कविता : नहीं चाहिये भीख…
मेरे देश में आते हैं
विश्व की सबसे बडी पहचान
मुझे पहनना चाहिये अच्छे ही परिधान
क्यों में दिखूँ अमेरिका के सामने गरीब
बराबरी का सौदा करना हो
जब नहीं चाहिये भीख……
सबने मिलकर आआपा को जिताया है…
किरण की सच्ची किरणों का विरोध दिखाया है….
आम-आम करके ‘आम’ को बना गये गुठली
खा लिया सारा गुदा कर करके चुगली
‘आम’ को समझ ना आयी तेरे मन की रीति
कहाँ गयी तुम्हारी नीति
कैसी है तुम्हारी प्रीति?
— संगीता कुमारी
जनता ने बहुत मूर्खता की है.
यह जनता है जी , कभी भी बदल सकती है.