नीतिश बाबू का कुर्सी प्रेम
बिहार की ताज़ा घटनाओं ने अपने सुशासन बाबू के कुर्सी प्रेम को नंगा कर दिया है. आतंकवादी इशरत जहां के ये स्वघोषित अब्बू, एक समय मोदी जी से इतना चिढ़ते थे कि भाजपा द्वारा उनको अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते ही उन्होंने पटना में सम्मलेन कर रहे भाजपा नेताओं को दिया जाने वाला भोज बहुत असभ्यता और अपमानजनक तरीके से रद्द कर दिया था.
इतना ही नहीं, उन्होंने जनता दल (यू) को भाजपा से अपना १७ साल पुराना गठबंधन तोड़ने के लिए भी बाध्य कर दिया था, जबकि अधिकांश नेता और कार्यकर्त्ता ऐसा नहीं चाहते थे. उनकी इस मूर्खता का परिणाम यह हुआ कि पहले तो कांग्रेस ने उनको गच्चा दिया, फिर लोकसभा चुनावों में बिहार की जनता ने उनको धूल चटा दी.
उनका अहंकार तब भी ख़त्म नहीं हुआ. मोदी जी के प्रधानमंत्री पद पर आने से पहले ही उन्होंने बिहार का मुख्यमंत्री पद यह कहते हुए छोड़ दिया कि जनादेश उनके विपरीत गया है. वास्तविक कारण यह था कि वे प्रधानमंत्री मोदी जी की शक्ल भी नहीं देखना चाहते थे. अपने मोदी द्वेष में उनको उस लालू प्रसाद के साथ गलबहियां डालने में कोई शर्म नहीं आई, जिनको वे जंगल राज के लिए पानी पी पीकर कोसा करते थे.
नीतीश बाबू ने एक साधारण से मंत्री जीतन राम मांझी को अपनी जगह मुख्यमंत्री बनाकर उनके पीछे से शासन चलाना शुरू किया. हालाँकि उन्होंने यह कभी नहीं बताया कि मांझी के लिए जनादेश कब मिला था. खैर, दो महीने माँझी साहब ने उनके रबर स्टाम्प की तरह कार्य किया, फिर उनका स्वाभिमान जागा तो अपनी मर्जी से शासन चलाने लगे.
नीतीश बाबू को यह गवारा न हुआ और अब वे फिर खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. हालाँकि वे अब भी यह नहीं बता रहे हैं कि उनको नया जनादेश कब और कहाँ से मिल गया है.
बिहार में जो भी हो, लेकिन यह बात एकदम स्पष्ट हो गयी है कि इन शर्म-निरपेक्ष लोगों में नैतिकता नाम की कोई वस्तु नहीं होती. अब तो बिहार की जनता ही इनको उचित दंड देगी.
हा हा , मुझे समझ नहीं आया कि इन लोगों के पास देश के लिए काम करने का समय कब मिलता है. सत्ता के लिए यह लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. बस किस्सा कुर्सी का .