“प्रकृति के गोद में”
अकेले बैठे हैं, सोच रहे हैं ।
सब कुछ है , धुप ले रहे हैं ।
प्रकृति के गोद में।।
पिला-सफेद,सब देख रहे है ।
सरसों फुली है,मटर फुली है।
प्रकृति के गोद में।।
फसल उगा है, हरी भरी कलियाँ।
सबको सुख देती,हवाओं का बहना।
प्रकृति के गोद में ।।
बच्चे खुश हैं,खुशियाँ मना रहे है।
लोग व्यस्त है सब हो रहा है ।
प्रकृति के गोद में।।
फुल खिल रहे हैं,आभास हो रहा है।
अकेले बैठे हैं, यही देख रहे हैं।
प्रकृति के गोद में।।
जो प्रकृति से पियार करना सीख ले उस को आनंद की कमी कभी न होगी, और ख़ास कर बसंत रुत की तो बात ही निराली है.
आपका आभार श्रीमान जी।
वाह ! प्रकृति माता की गोद का आनन्द ही और है.
आभार!