एक और जीवन
तुम्हारे अकेलेपन के आकाश में
अक्षर ,सितारों की तरह जगमगाते होंगे
तुम्हारे अकेलेपन के वन में
शब्द के बीज अंकुरित होकर
चन्दन का वृक्ष बन महकते होंगे
तुम्हारे अकेलेपन के आँगन में
गमलों में
सपने गुलाब सा खिलते होंगे
तुम्हारे अकेलेपन के घर में
न दरवाजा ,न खिड़कियाँ न दीवारे होंगी
तुम्हारे अकेलेपन के आईने में
तुम्हारी हमशक्ल एक युवती
की छवि सुरक्षित होगी
जिसके ख्याल
तुमसे पूरी तरह से मिलते होंगे
वह कहती होगी .
लौट आओ
फिर से इसी जन्म में
एक और जीवन
अपनी इच्छानुसार जीने के लिए
तुम्हारे अकेलेपन की ख़ामोशी
चांदनी के धागों से बुनी हुई
बहुत मुलायम होगी
किशोर कुमार खोरेन्द्र