आदि से अनंत
मुझे ख़ुशी है ,
मेरे बाद भी
कुछ रहेगा ।
न मिटेगा ,
न थकेगा ,
मगर हाँ
रहेगा ।
वक़्त की धुरी,
कब है रुकी
तू मुझमें
मैं तुझमें
सब रहेगा
रहेगा हाँ
रहेगा ।
मेरी रूह किताबी
कविता हो गाती
कुछ सुनती
कुछ सुनाती
न मिटती
न मिटाती
बनाती ।
सिलसिला न रुकेगा
मुझे तेरी तलाश
एक आस
मौन भाष
हो अव्यक्त
पर व्यक्त
रहेगा ।
……………………अंशु (एक कविता, मन की बात )
बहुत बहुत सुन्दर ….
जी आभार
बढ़िया !
आभार सिंघल सर