कविता

आदि से अनंत

मुझे ख़ुशी है ,

मेरे बाद भी

कुछ रहेगा ।

न मिटेगा ,

न थकेगा ,

मगर हाँ

रहेगा ।

वक़्त की धुरी,

कब है रुकी

तू मुझमें

मैं तुझमें

सब रहेगा

रहेगा हाँ

रहेगा ।

मेरी रूह किताबी

कविता हो गाती

कुछ सुनती

कुछ सुनाती

न मिटती

न मिटाती

बनाती ।

सिलसिला न रुकेगा

मुझे तेरी तलाश

एक आस

मौन भाष

हो अव्यक्त

पर व्यक्त

रहेगा ।
……………………अंशु (एक कविता, मन की बात )

4 thoughts on “आदि से अनंत

  • उपासना सियाग

    बहुत बहुत सुन्दर ….

    • अंशु प्रधान

      जी आभार

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • अंशु प्रधान

      आभार सिंघल सर

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