क्यूंकि तुम प्रेम हो और प्रेम मैं भी हूँ …..
मैं प्रेम हूँ
और
तुम भी तो प्रेम ही हो।
प्रेम से अलग
क्या नाम दूँ
तुम्हें भी और मुझे भी …
कितनी सदियों से
और जन्मो से भी
हम साथ है
जुड़े हुए एक-दूसरे के
प्रेम में।
दिखावे की है लेकिन ये
समानांतर रेखाए
प्रेम ने तो अब भी बांधा
हुआ है
तुम्हें भी और मुझे भी।
क्यूंकि तुम प्रेम हो और
प्रेम मैं भी हूँ …….
बहुत खूब !
nice