कविता

क्यूंकि तुम प्रेम हो और प्रेम मैं भी हूँ …..

मैं प्रेम हूँ

और

तुम भी तो प्रेम ही हो।

प्रेम से अलग

क्या नाम दूँ

तुम्हें भी और मुझे भी …

कितनी सदियों से

और जन्मो से भी

हम साथ है

जुड़े हुए एक-दूसरे के

प्रेम में।

दिखावे की है लेकिन ये

समानांतर रेखाए

प्रेम ने तो अब भी बांधा

हुआ है

तुम्हें  भी और मुझे  भी।

क्यूंकि तुम प्रेम हो और

प्रेम मैं भी हूँ …….

 

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।

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