कवि की प्रेरणा
मुझे ….
मेरी डायरी ने
याद किया होगा
उस कोरे पन्ने ने भी
जिस पर मै
संभवत:
एक कविता लिखा होता
अपनी बारी के इन्तजार में
मुझे वह पन्ना कोस रहा होगा
लिखते लिखते थक चुकी पेन की नीब
अब
विश्राम करते करते थक चुकी होगी
मेरी कुर्सी में
मेरी जगह पर किसी को न पाकर
मेरा कमरा ऊब चुका होगा
इन सबको पता नहीं की मैं
अब
नहीं रहा हूँ……
खिडकी के परदे को हटाकर
देखती आशंकित हवा सोच रही होगी –
कहीं ..मै लौट तो नही आया
मेरी चप्पलो को
मेरे चश्मे को
मेरी कमीज को
अब तक -विशवास ही नही हुआ है
कि
मै इस दुनियाँ में नही हूँ
जिस पर मैं लिखता आया हूँ
मेरी कवितायें
उसे
याद करती हैं
और
आपस में कहती हैं –
हमसे बिछड़ चुके
कवि के लिए
हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी
हमेशा के लिए
की
हम कवि की
उस मूल प्रेरणा को कभी
न भूले
किशोर कुमार खोरेन्द्र
बढ़िया !
thank u