ऐसा प्रतीत हो रहा है ••••
सुबह सुबह सूर्य की किरणें ,
अम्बर पट को धारण किए,
क्षितिज को बलगाते हुए ,
आ रही है, ऐसा प्रतीत हो रहा है
पशु पक्षि सभी प्रजातियों,
के शरीर को प्रेममय किए,
सभी को सहलाते हुए,
आ रही है, ऐसा प्रतीत हो रहा है।
वृक्ष पौधे सभी वनस्पतियों,
किरण कि चादर लिए ,
इनके उपर फैलाते हुए,
आरही है ऐसा प्रतीत हो रहा है।
मनुष्य पृथ्वी वासियों ,
सौन्दर्य कि सुगंध लिए,
धरातल पर बिखेरते हुए,
आ रही है ऐसा प्रतीत हो रहा है।
प्रकृति प्रेम कविता।
धन्यवाद निवेदिता जी।
बहुत खूब !
आभार आपका श्रीमान जी।