कहानी

“आशा ही निराशा का कारण है •••”

एक बार की बात है कि मैं बहुत अच्छे तरीके से अपनी पढ़ाई कर रहा था जब अपनी पढ़ाई को पढते हुए स्नातकोत्तर की उपाधि यू०पी० कालेज वाराणसी से ली तभी अचानक मेरे अन्दर एक आशा की किरण जगी शायद मैं उस समय बहुत खुश था कि जब एक हमारे रिश्ते दार आकर बोले कि-
” तुम्हें बी०एड०करना है बहुत सुनहरा अवसर है।”
तभी मैं जबाब दिया -“नहीं -नहीं मुझे बी०एड०करना है ऐसी -वैसी जगह से नहीं अच्छी जगह से करना है।”
फिर क्या मैं लग गया अपनी तैयारी में उसी समय।२००७-०८ संन्युक्त प्रवेश परीक्षा बी०एड०उत्तर प्रदेश से। विज्ञापन आया और मैं उस फार्म को भरकर भेज दिया ।तैयारी चल रही थी सपने सजा रहे थे सोच रहे थे कि अगर मैं बी०एड०कर लुगा तो अध्यापक बन जाऊँगा बच्चों को सिखाऊँगा कितना आनंद आयेगा।जब बच्चे हमारे बताये गये रास्ते पर अमल कर चलने की कोशिश करेंगे ।एक देश का अच्छा नागरिक बनेंगे कितना अच्छा कार्य है वो दिन कब आयेगा ••••••••••••।यही सब सपने थे हमारे उस समय।सपने देखना अच्छी बात है उसे साकार रुप देना और अच्छी बात है।
तभी अचानक हमारे प्रदेश बिहार में शिक्षक की बहाली निकलने वाली थी हमारे दिमाग में आया कि क्यों न उस रिश्ते दार से पुछा जाय।उसी समय मैं अपने रिश्तेदार से मिला और पुछा –
“कहाँ आप बी०एड० करने के लिये कह रहे थे ।”
“राहुल नाम है उसका नम्बर मैं आपको दे रहा हूँ।”रिश्तेदार बोलें।
मैं नम्बर लिया और फौरन उसके यहाँ कॅाल कर दिये । ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग—
“हाँ जी कौन”राहुल की आवाज़।
“हाँ जी मैं रमेश नमस्कार सुने हैं कि आप गाजियाबाद में बी०एड०करा रहे है”-मैं बोला।
फिर क्या सभी बातें राहुल जी से हो गयी।मैं नौकरी पाने की आशा में तैयार हो गया और उनके साथ जाकर नमांकन करा लिया।
वहाँ पर जाकर सुमन चौहान नाम की एक महिला से मुलाकात हुई जो महिला बी०एड०विद्यालय की प्रचार्या थीं।पैसा और सभी कागजात उन्हीं को दिया गया था।
चार महीने बाद -दुसरी बार मैं गाजियाबाद पहुँचा तो मैं सिधे सुमन जी के यहाँ पहुँच गया।उन्हीं के द्वारा मुझे बताया गया -यह विद्यालय आपका नहीं है।”तब कहाँ हैं”मैं पूछा।”आपका नमांकन दूसरे बी०एड०विद्यालय में कराया गया है,जिसका नाम है आई०एल०ए०एस० कविनगर औद्योगिक क्षेत्र गाजियाबाद”-सुमन जी बोली।
मैं वहाँ का पता लिया और नये शहर में भटकता हुआ किसी तरह बहुत मशक्कत के बाद उस विद्यालय पर पहुँच गया।
तब वहाँ से मुझे सब जानकारी मिली जानकारी के मुताबिक सभी पढने की सामग्री लेकर घर की तरफ वापस हो गया यही सोच रहा था कि मैं कहाँ आकर फंस गया इस पढाई से कौन सा ज्ञान मुझे प्राप्त हो जायेगा। इस तरह के विद्यालय मे पहली बार नमाकंन हुआ था।
पाँच महीने बाद -मोबाइल के जरिए खबर मिला कि अपना परीक्षा फार्म आकर भर दें और तीसरी बार मैं वहाँ जाकर फार्म भर दिये और वही एक दोस्त के रूम पर ठहरकर अपनी प्रायोगिक फाइलें तैयार करने लगा लगभग दस दिन वहाँ रूका था और सभी फाईलें तैयार कर लिया। और वापस घर आ गया।
छ:महीने बाद चौथी बार फिर मैं विद्यालय पहुँचा तो वहाँ बोला गया कि क्लास करना है।क्लास में पहुँचा तो मात्र दस बच्चे ही थे जहाँ २००सिट निर्धारित था।अजीब लगा मुझे कैसा विद्यालय है जहां इस तरीके का पढाई हो रही है। प्रायोगिक कार्य पूरा हो चुका था जो बाकी था वो भी समझ कर वहाँ से वापस घर आ गया।
एक महीने बाद -पाँचवीं बार खबर मिला कि कोर्ट का फैसला आ गया है कि परीक्षा होगी।और मुझे कहा गया कि -आप आये अपनी फिस जमा कर और प्रायोगिक फाइलें जमा कर परीक्षा की तैयारी करें परीक्षा की तारीख आ चुकी हैं। मैं। कहाँ। ठिक है श्रीमान जी ।
उसी समय हमारे एक साथी श्याम कुमार जी मिले जो हमारे गांव के पड़ोसी गांव के थे।
“आप कहाँ से बी०एड०कर रहे हैं।”श्याम जी बोले
“गाजियाबाद”-मैं जबाब दिया।
“मैं भी तो गाजियाबाद से ही बी०एड०कर रहा हूँ।”-श्याम जी बोले।
“किधर हैं आपका विद्यालय”-में पूछा।
“दुहाई से रास्ता जाता है”-श्याम जी बोले।
“वही तो मैं अपने साथी के साथ ठहरता हूँ”-मैं कहा।
“किस विद्यालय से है “-दुबारा पूछा मैं।
“जनहित स्टीच्युट में है”-श्याम जी बोले।
“जनहित में ——–“मैं उन्हीं के बात को दोहराया।
“चलिए परीक्षा होने वाली है कोर्ट का फैसला आ गया है परीक्षा तारीख भी आ गई है।”मैंने कहा।
“आ गया है कब जा रहे है।”-श्याम जी बोले।
“बस इधर ही निकलने वाले हैं “-मैं बोला।
“चलिए मैं भी साथ में चलुगा ।”श्याम जी बोले।
“ठिक हैं”मैं कहा।
फिर हम दोनों लोग एक साथ गाजियाबाद के लिए रवाना हो गये ट्रेन की भिड़ को सहते हुए ।गाजियाबाद पहुँच गए और वहाँ जाकर श्याम जी के विद्यालय पर पहुँच गये पता चला कि इनका(श्याम)नाम वहाँ पर हटा दिया गया है कारण फिस की मात्रा कम दी गई थी।वे बहुत ही निराशा हए ।यहाँ के बाद हम दोनों अपने विद्यालय पर पहुँचे वहाँ पर सभी तैयारीया चल रही थी तभी अचानक हमारे मन में एक उपाय सुझा की अभी परीक्षा फार्म भरा रहा है तब तो श्याम भईया का हो सकता है चलिए कोशिश करते हैं।श्याम भईया भी राजी हो गए।
क्लर्क के पास हम दोनों गये।
“क्या श्रीमान जी अभी नमाकंन हो सकता है।”-मैं बोला।
“हाँ लेकिन आजकल के अन्दर में ही कोशिश करते तो। हो सकता है।”-क्लर्क बोला।
“ठिक हैं श्रीमान जी मैं बता रहा हूँ आपको अभी”बाहर निकलते हुए मैं बोला।
बाहर निकल कर हम दोनों लोग आपस में बातचीत करके फैसला ले लिया कि ठिक हैं कराया जाए।नमाकंन करा दिया गया पैसा दो दिनों के अंदर दे दिया गया।
मुझे बड़ा आश्चर्य सा लगा कि मैं १५ महीने से झेल रहा था श्याम जी का सप्ताह भर के अन्दर काम हो गया।ये है हमारी शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय का हाल इन बड़े शहरों में।
परीक्षा की तारीख निकल चुकी थी प्रवेश पत्र परीक्षा के दो दिन पहले वहाँ के कर्मचारी लोग।हम लोग वही साथी के पास दुहाई में रूके हुए थे।अपनी अपनी तैयारी में जुट गये।
अब वो दिन दुर नहीं जीस दिन प्रवेश पत्र मिलने वाला था हम दोनों प्रवेश पत्र लेने के लिये विद्यालय पर पहुँच गये।तब श्याम कुमार जी का प्रवेश पत्र तो मिल गया मेरा प्रवेश पत्र नहीं मिलरहा था। बहुत प्रयास और कोशिश करने के बाद पता चला कि मेरा परीक्षा फार्म विश्वविद्यालय पहुँचा ही नही है तो प्रवेश पत्र आयेगा कहाँ से।
तभी मैं डाइरेक्टर के पास पहुँचे।
“श्रीमान जी मेरा प्रवेश पत्र नहीं आया हैक्यो?”-मैं सवाल किया।
“नहीं ऐसा तो नहीं हुआ होगा”-डाइरेक्टर बोला।
“ऐसा ही हुआ है श्रीमान जी इस विद्यालय में”-मैं बोला।
जाँच पड़ताल किया तो पता चला कि पाँच विद्यार्थी का परीक्षा फार्म यही पर क्लर्क की गलती से छुट गया।तो प्रवेश पत्र कहाँ से आयेगा।इस बात की जानकारी मुझे भी हो गई।
डाइरेक्टर और प्राचार्य दोनों आपस में बात कर रहे थे कुछ घाल-मेल करने की तभी डाइरेक्टर की आवाज़ सुनाई दी नहीं ऐसा नहीं हो सकता ।बाद में दोनों आपस में सहमत हो गए मुझे अन्दर बुलाया गया।
“इधर आइए।”-प्राचार्य बोले।
“हाँ श्रीमान जी बोलिए।”-मैं बोला।
“आपका प्रवेश पत्र आ गया है।”-प्राचार्य बोले।
“अच्छा —आ गया है”-मैं बोल पड़ा।
“अच्छा श्रीमान जी एक बात पुछे “-मैं कहा।
“हाँ पूछिए”-प्राचार्य(डाइरेक्टर के सामने ही)बोले।
“क्या परीक्षा फार्म बिना गये ही कोई बोर्ड या विश्वविद्यालय
प्रवेश पत्र इशु कर सकता है।”-मैंने कहा।
दोनों खामोश!(प्राचार्य,डाइरेक्टर)
” मुझे नहीं करना है बी०एड०मेरा फिस वापस किजीए मेरे नसिब में बी०एड०नही है “-थोड़ा आवेश में आकर बोला।
फिर वहाँ से चल दिये मेरा प्रवेश पत्र नहीं मिल पाया।सुबह में परीक्षा के दिन हम दोनों लोग पुन: विद्यालय पर पहुँचे । निराशा की किरणें झलक रही थी। फिस की आस लिये पहुँचे हुए थे बहुत कोशिश करने के बाद मेरी फिस लौटा दी गयी थी।
मैं लगभग १६ महीने से इन्तजार करने के बाद वापस घर जायेगे ये सपनों में भी नहीं सोचा था बहुत दुखद घड़ी थी जिसको याद करने भर से आँखों में आशु आजाते हैं।गाजियाबाद में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में लगभग बारह हजार विद्यार्थी साथ में मेरे श्याम कुमार जी परीक्षा देने गये।और मैं अपना पैसा लिये उस विद्यालय की तरफ देख रहा था।आँखों से आशु आ रहे थे पिछली बातें याद कर रहे थे।अगर मैं यहाँ नहीं आया होता नौकरी पाने की आशा से यहाँ नहीं फसाँ होता तो यह बुरा दिन आज नहीं देखने को मिलता। उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रवेश परीक्षा बी०एड० के दौरान,ज्योतिबाफुले रोहेलखण्ड विश्वविद्यालय बरेली। बाला जी एकेडमी मुरादाबाद में यहां के वजह से छुट गया २००८-९सन्न उत्तर प्रदेश सरकार शुन्य कर दिया।२००९-१० सन्न प्रवेश फार्म नहीं भर पाये इस विद्यालय के कारण । जिस विद्यालय से हम वापस लौट रहे थे यही सब बातें सोच रहे थे।बहुत कष्ट हो रहा था तभी अचानक रिक्शा वाला आया।और श्याम जी को परीक्षा देने जाना था हमें घर वापस लौटना था हम दोनों लोग आपस में रोने लगते है समय बहुत कीमती मेरे हाथों से निकल चुका था।वो कष्टकारक दिन आज भी सोचने पर मन भावुक हो जाता है।श्याम भईया अपना परीक्षा देने जाते है हम वापस घर आ जाते हैं।
इस कहानी के माध्यम से यही बताना चाहता हूँ कि नौकरी की जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम न उठायेंगे जिसके वजह से समय की। बर्बादी हो क्यों कि समय बहुत ही मूल्यवान है इसे बचाये रखना। या सदुपयोग करें यही पर हमारे जीवन में पहली बार आशा ही कारण बनी हमारे निराशा की।
———–रमेश कुमार सिंह ♌
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रमेश कुमार सिंह 'रुद्र'

जीवन वृत्त-: रमेश कुमार सिंह "रुद्र"  ✏पिता- श्री ज्ञानी सिंह, माता - श्रीमती सुघरा देवी।     पत्नि- पूनम देवी, पुत्र-पलक यादव एवं ईशान सिंह ✏वंश- यदुवंशी ✏जन्मतिथि- फरवरी 1985 ✏मुख्य पेशा - माध्यमिक शिक्षक ( हाईस्कूल बिहार सरकार वर्तमान में कार्यरत सर्वोदय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सरैया चेनारी सासाराम रोहतास-821108) ✏शिक्षा- एम. ए. अर्थशास्त्र एवं हिन्दी, बी. एड. ✏ साहित्य सेवा- साहित्य लेखन के लिए प्रेरित करना।      सह सम्पादक "साहित्य धरोहर" अवध मगध साहित्य मंच (हिन्दी) राष्ट्रीय सचिव - राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन मध्यप्रदेश,      प्रदेश प्रभारी(बिहार) - साहित्य सरोज पत्रिका एवं भारत भर के विभिन्न पत्रिकाओं, साहित्यक संस्थाओं में सदस्यता प्राप्त। प्रधानमंत्री - बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन इकाई सासाराम रोहतास ✏समाज सेवा - अध्यक्ष, शिक्षक न्याय मोर्चा संघ इकाई प्रखंड चेनारी जिला रोहतास सासाराम बिहार ✏गृहपता- ग्राम-कान्हपुर,पोस्ट- कर्मनाशा, थाना -दुर्गावती,जनपद-कैमूर पिन कोड-821105 ✏राज्य- बिहार ✏मोबाइल - 9572289410 /9955999098 ✏ मेल आई- [email protected]                  [email protected] ✏लेखन मुख्य विधा- छन्दमुक्त एवं छन्दमय काव्य,नई कविता, हाइकु, गद्य लेखन। ✏प्रकाशित रचनाएँ- देशभर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में एवं  साझा संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित। लगभग 600 रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं तथा 50 साझा संग्रहों एवं तमाम साहित्यिक वेब पर रचनाये प्रकाशित। ✏साहित्य में पहला कदम- वैसे 2002 से ही, पूर्णरूप से दिसम्बर 2014 से। ✏ प्राप्त सम्मान विवरण -: भारत के विभिन्न साहित्यिक / सामाजिक संस्थाओं से  125 सम्मान/पुरस्कार प्राप्त। ✏ रूचि -- पढाने केसाथ- साथ लेखन क्षेत्र में भी है।जो बातें मेरे हृदय से गुजर कर मानसिक पटल से होते हुए पन्नों पर आकर ठहर जाती है। बस यही है मेरी लेखनी।कविता,कहानी,हिन्दी गद्य लेखन इत्यादि। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आदरणीय मित्र मेरे अन्य वेबसाईट एवं लिंक--- www.rameshpoonam.wordpress.com http://yadgarpal.blogspot.in http://akankshaye.blogspot.in http://gadypadysangam.blogspot.in http://shabdanagari.in/Website/nawaunkur/Index https://jayvijay.co/author/rameshkumarsing ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आपका सुझाव ,सलाह मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत है ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

2 thoughts on ““आशा ही निराशा का कारण है •••”

  • निवेदिता चतुर्वेदी

    अच्छी कहानी है।

    • रमेश कुमार सिंह

      धन्यवाद निवेदिता जी।

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