विज्ञापन–कितने सच ?
विज्ञापन किसी भी वस्तु विशेष, उत्पाद, या सेवा आदि को जन जन तक प्रचारित करने का एक बहुत ही सशक्त साधन है, इससे इसकी उपयोगिता और उपलब्ता की जानकारी तो मिलती ही है, साथ में गुणों आदि का विश्लेषण करने का भी ग्राहक को खरीदने से पहले मौका मिल जाता है.
पहले तो विज्ञापन का प्रचार समाचार पत्र, पत्रिकाओं में मिलता था, और कुछ सार्वजनिक स्थानो पर,फिल्म से पहले सिनेमा हाल में, और बाद में रेडियो पर विज्ञापन प्रसारण सेवा शुरू हुई. आजकल टी वी विज्ञापन का सबसे सशक्त साधन बना हुआ है, आज सबसे बड़ी विचार करने की बात यह की आजकल विज्ञापन वास्तविकता से दूर होते जा रहे हैं, और भ्रमात्मक भी, जैसे किसी शीतल पेय को पीने से कोई सुपर मैन की हरकते कर रहा है, किसी ब्रांड की बनियान पहन लेने से सब काम आराम से हो जाता है, चोर भी भाग जाता है, और भी ऐसे कई विज्ञापन है जिनमे जो कुछ दिखाया जाता उसका उस वस्तु विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं होता ,
जहां तक मुझे याद आता है, साठ के दशक में विविध भारती से विज्ञापन सेवा के समय कुछ ऐसी उद्घोषणा भी की जाती थी—“अगर आपको लगता है की विज्ञापन में किसी वस्तु की उपयोगिता के बारे में बड़ा चढ़ा कर बताया जा रहा है, यानि बताई बात वस्तु के गुणों से मेल नहीं खाती तो हमें अपने विचार दें, ”
विज्ञापन जितना अनोखा होगा या जितना संदेशात्मक होगा उसका लाभ मिलेगा, लेकिन किसी भी दशा में विज्ञापन सच्चाई से दूर नहीं होना चाहिए. न ही उसमे अश्लीलता होनी चाहिए न ही किसी की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचनी चाहिए.
एक और बात जो ध्यान देने वाली है की बड़े बड़े सितारे विज्ञापन में दिखाई देते हैं और इसके लिए अच्छा खासा पैसा भी लेते हैं, यह पैसा भी तो आखिर ग्राहक की जेब से ही जाता है, और कीमत बढ़ जाती है, क्या यह ज़रूरी है, और जो सितारे जिस वस्तु का विज्ञापन दे रहे हैं , शायद ही स्वयं भी इस्तेमाल करते हों, यह एक विचार का विषय है,
आप सब के विचार आमंत्रित हैं, धन्यवाद.
— जय प्रकाश भाटिया
भाटिया जी , आप ठीक कह रहे हैं , अपनी चीज़ बेचने के लिए विगियापन में किया कुछ नहीं बताते यह लोग ? बहुत दफा मैं सोचता हूँ कि कानून होना चाहिए जिस से किसी भी खिलाड़ी या एक्टर को दोषी थैह्राया जाए जो आप को कह रहा है कि यह प्रोडक्ट बहुत गुणकारी है किओंकि वोह ही आप को बता रहा है , इस लिए उस को ही ज़िमेदार थैह्राया जाए.