प्रयास
तुम एक निष्ठुर साहिल निश्चिंत
मैं तुम्हारी सत्ता की एक लहर
नील गगन से नील सागर तक
खुद को झिंझोड़ती निचोड़ती
गिरती उठती मचलती
तुम्हारी सत्ता में
भटकती रहती हूँ
निर्बाध !
मेरी मंजिल तुम ही क्यों हो
तुम मगर मौन क्यों हो
तुम्हें मेरा मचलना घुमड़ना
फिर तुमसे टकराना
तुम तक आना जाना
फिर खो जाना
अच्छा लगता है
निर्वाद !
क्या है ये सत्ता का अहंकार
या फिर कोई विकार
तुम्हारी आँखों के सामने
जीवन मृत्यु से भरा संसार
उगता बनता फलता मिटता
मगर सब बेकार
क्योंकि तुम एकाकार
निराकार !
अपनी मर्जी के तुम मालिक
तुम्हारी मर्जी का राज
न जाने कितने घोंघे शैवाल
जिन्हें तुम फ़ेक देते हो
जो तुम्हारे हैं ! मगर नहीं ?
किनारे की आस में मिटते
तुम्हारी प्यास में
लगातार !
बताओ तुम्हारी सत्ता का क्या है राज
गहरा सागर, गहरा आकाश, गहरे तुम
सब नीले और नीले तुम
नीली सत्ता का राज
कब तक बांधोगे समंदर
कब तक समेटोगे सब अंदर
क्यों इतने लाचार
आज !
क्या है कोई प्रकाश जो
चीरता हुआ तुम्हें तुम से मुझ तक
मुझ से तुम तक……….आएगा ?
तुम्हारे आकार में एक हो पायेगा
तुम एकाकार फिर भी मैं…प्रथक !
तुम्हें जानूँ है प्रयास अथक
एक आस एक
प्रयास !
.
अच्छी कविता, गैहरे विचार .