कविता

जीवन

 

पक रही है धान की फसल
खेतों में जैसे बिछ गया है
दूर दूर तक स्वर्णिम आँचल
कच्ची बालियों के ऊपर बैठी
एक नन्हीं चिड़ियाँ


सोच रही है हवा के झोंकों में
क्यों नहीं है हलचल
मेड़ों पर ठहरे हुए से पदचिन्ह
भयभीत हैं
गीली मिटटी में कहीं
उनके पाँव भी न जाए फिसल

छोटे छोटे गड्डों में
समाये हुए हैं
अंबर के भीमकाय बादल
तालाब की सतह से
शीश उठाये झांक रहे हैं
रह रह कर
खिले हुए नीलकमल
बबूल की शाखों पर मौसम ने
हल्दी सा छिड़क दिया है
पीली पंखुरियां सुकोमल
धूप में तपकर
सूरजमुखी की सुन्दरता
और गयी है निखर

पलाश की हथेली सी पत्तियों पर
सौभाग्य की अमिट रेखाएँ
आयी हैं उभर  

अतिथि की तरह अचानक
टपक पड़ता है आकाश के छत से
बूंद बूंद भर जल
सुबह सुबह कोहरे की
घनी परतों को भेदकर
सूरज भी नहीं पाता है
आजकल निकल

नदी की
लहराती मंथर गति को देखकर
चट्टानों का
दिल भी जाता हैं मचल
ऐसे में परछाईयों को भी
एक दूजे से प्यार हो गया है
उनके  ह्रदय भी हैं विकल

भोर से गए पंछी आये या नहीं
चिंतित संध्या के माथे पर है बल
मनुष्य मनुष्य से
करते है अक्सर छल
प्रकृति तो है
सीधी साधी और सरल

अनुशासित और शाश्वत हैं
उसके नियम अटल

दुःख और सुख के बराबर बराबर

अनुभवों में विभाजित है 

जीवन के पल सकल 

किशोर कुमार खोरेन्द्र 

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “जीवन

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत सुन्दर कविता.

Comments are closed.