“सौन्दर्य ही कर्तव्य”
सौन्दर्य ही कर्तव्य दीख पड़ता है,
जहां सौन्दर्य दीख पड़ता है।
वहाँ कविता दीख पड़ती है ,
वही जीवन दीख पड़ती है ।
एक भीखमंगी को मैं,
इसलिए देता हूँ भीख मैं,
उसमें एक कविता,एकलय,
एक सौन्दर्य,व्यथा झलकती है।
झुरियोदार चेहरा उसकी,
बेबस गढ्ढे आखों की,
झुकी हुई कमर उसकी,
कपती उँगलियाँ हाथो की,
बनाया है ईश्वर ने खुब,
परवाह करता हूँ उनकी,
फूलों की पंखुड़ियों की,
जगमगाती हुई ओस की।
संध्या में सूर्य की किरणों की,
गगन में नभ टुकड़ीयों की
टिमटिमाते हुए तारों की।
उठती नदियों में लहरों की।
इन सभी में सुन्दरता है।
सुन्दरता ही सौन्दर्य है।
सौन्दर्य में ही उलझना।
यहि मेरा कर्तव्य है।
——–रमेश कुमार सिंह ♌
बहुत अछे विचार .
धन्यवाद श्रीमान जी।