माध्यम
मैँ तो सिर्फ हूँ
एक माध्यम
कविता नहीं होती है ख़तम
बूंद बूंद की तरह आपस में
जुड जाते हैं अक्षर
शब्दों से शब्द मिलकर
बिखरते हैं ऐसे
जैसे हो
वे वाक्यों की अनेक लहर
जब भी तुम्हारे प्यार का
होता है मीठा सा अहसास
ह्रदय के भाव आते हैं उभर
तुम्हारे मन में है एक
ऐसा भी घर
जहां मेरे साये का होता है
तुम्हारे संग बसर
तुमसे बाते करता हुआ वहाँ
मैँ थकता नहीं हूँ
तुम्हारी मूक निगाहों की भाषा
होती है सरस
जिसका मुझ पर
पड़ता है गहरा असर
मैँ तो सिर्फ हूँ
एक माध्यम
कविता नहीं होती है ख़तम
किशोर कुमार खोरेन्द्र
वाह