आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 9)
हमारे सेक्शन के भवन में कोरबा डिवीजन (जिला अमेठी) के जो दो अधिकारी बैठते थे वे थे श्री अजय अग्रवाल और श्री राजीव श्रीवास्तव। दोनों बहुत मस्तमौला आदमी थे। चुटकुले सुनाने में माहिर थे। खास तौर से अजय अग्रवाल लगभग हर हफ्ते या 15 दिन मेंएक धाँसू चुटकुला लाते थे (जाने कहाँ से) और अपनी विशेष स्टाइल में सुनाते थे, तो सब लोटपोट हो जाते थे और कई दिनों तक हँसते रहते थे। जैसा कि स्वाभाविक है, उनके चुटकुलों में कुछ अश्लीलता का पुट होता था। मैंने उनके सुनाए हुए चुटकुले एक अलग काॅपी में लिख रखे थे, परन्तु वह काॅपी अब कहीं खो गयी है या शायद मैंने ही फेंक दी है।
अजय अग्रवाल का विवाह तब हुआ था, जब मैं एच.ए.एल. में नया-नया आया था। उस समय तक उनसे ठीक से परिचित नहीं था, लेकिन दूसरे अफसरों के साथ मैं भी उनकी बारात में शामिल हुआ था और डांस भी किया था। राजीव श्रीवास्तव का विवाह बाद में हुआ था, पर लखनऊ से काफी दूर। इसलिए बारात में कोई नहीं गया था, परन्तु उनके रिसेप्शन में हम सब शामिल हुए थे। उस समय हमने यह नियम बनाया था कि जिसका विवाह होता था, उसको सबकी ओर से पार्टी दी जाती थी। सबसे पहले शशिकांत लोकरस, फिर आलोक खरे, फिर संजय मेहता, फिर जी.के. गुप्ता को ऐसी पार्टी दी गयी थी। लेकिन राजीव श्रीवास्तव को पार्टी नहीं दी गयी, तो मुझे बहुत बुरा लगा था।
बाद में कोरबा डिवीजन पूरी बन जाने पर अजय अग्रवाल, राजीव श्रीवास्तव और उनके सभी आॅपरेटर साथी हमारे सेक्शन से कोरबा चले गये थे। काफी समय बाद एक बार जब मैं वाराणसी में था और अपने बैंक के काम से अमेठी गया था, तो पता चला कि कोरबा डिवीजन वहाँ से केवल 7-8 किमी दूर है। मैं समय निकालकर टैम्पो से कोरबा पहुँच गया। मैं खास तौर से अजय अग्रवाल से मिलने और उनके चुटकुले सुनने गया था, परन्तु संयोग से उस दिन वे छुट्टी पर थे। राजीव श्रीवास्तव सहित बाकी सभी से मेरी मुलाकात हुई थी। सभी मुझसे मिलकर बहुत खुश हुए थे। राजीव श्रीवास्तव के यहाँ मैंने दोपहर का खाना भी खाया था। उनकी पत्नी श्रीमती वन्दना ने बहुत अच्छा खाना बनाया था। इसके बाद उन लोगों से अभी तक मेरी मुलाकात नहीं हुई है।
हमारे सेक्शन के अधिकारियों में बहुत ही आत्मीय और पारिवारिक सम्बंध बन गये थे। प्रारम्भ में कुछ लोग ही शादीशुदा थे। उनके परिवारों का मिलन पहली बार श्री राकेश कुमार श्रीवास्तव के यहाँ उनकी पुत्री के जन्मदिन की पहली वर्षगाँठ पर हुआ था। वहाँ बाजपेयी जी को छोड़कर सभी विवाहित अधिकारी सपरिवार आये थे। उसके बाद जहाँ भी किसी अधिकारी के यहाँ कोई कार्यक्रम होता था, तो सबका मिलन हो जाता था। एक बार हम सब अधिकारियों ने लखनऊ के ऐतिहासिक दिलकुशा बाग में पिकनिक भी मनायी थी। तब तक कई अधिकारियों का विवाह हो चुका था। सब अपने पूरे परिवार के साथ उसमें शामिल हुए थे। उस पिकनिक में सभी अधिकारियों के टाइटिल बनाने का काम मुझे सौंपा गया था। मैंने सबके मजेदार टाइटिल बनाए थे और पिकनिक में सुनाए थे। सबने खूब प्रशंसा की थी।
उसके बाद खाना-पीना हुआ। सब लोगों को अलग-अलग चीजें बनाकर लाने के लिए कहा गया था। मैं कुछ बना नहीं सकता था, इसलिए केवल अचार ले गया था। खाने के बाद खेल-कूद का कार्यक्रम था। मैंने एक दिमागी युद्ध (Intelligence War) का खेल बनाया था। इसमें एक पर्ची को छिपाया जाता है और उसको खोजने के संकेत दूसरी पर्ची पर लिखे जाते हैं, उसको खोजने के संकेत तीसरी पर्ची पर…. इस तरह कुल 5 पर्चियाँ ढूँढ़नी होती हैं। खिलाड़ियों के दो समूह बनाये जाते हैं और उन्हें अलग-अलग एक-एक पर्ची दी जाती है। फिर उनसे कहा जाता है कि अपनी-अपनी पर्चियाँ खोजते हुए अन्तिम पर्ची तक पहुँचना है। अन्तिम पर्ची दोनों समूहों की समान होती है। जो दल पहले उस पर्ची तक पहुँच जाता है, वह जीत जाता है।
पर्चियों में संकेत बहुत सूत्र रूप में होते हैं। उदाहरण के लिए, एक पर्ची थी- ‘बच्चे बनकर जाइए। लटककर जोर-जोर से हँसिये और ठोकर मारकर आगे का मार्ग ज्ञात कीजिए।’ इसका अर्थ है कि ‘उस परिसर में बच्चों के खेलने का एक पार्क है। उसमें लटकने का एक झूला है। उसके नीचे पड़े हुए किसी पत्थर के नीचे वह पर्ची छिपी हुई है।’ इसी तरह के संकेतों के अनुसार आगे की पर्चियाँ खोजी जाती हैं। इस खेल में सबको बहुत आनन्द आया। लगभग 2 घंटे भटकने के बाद एक समूह जीता था।
इसके बाद थोड़ी देर क्रिकेट हुई। पत्नियों से बल्लेबाजी और पतियों से बाॅलिंग करायी गयी थी। मैंने केवल फील्डिंग की थी। फिर एक मजेदार खेल हुआ, जिसका नाम है डम्ब करैक्टर (Dumb Character)। इसमें मूक अभिनय के अनुसार किसी फिल्म के नाम का पता लगाया जाता है। इस खेल के लिए जो विवाहित थे, उन पति-पत्नियों के जोड़े बनाये गये। जो अकेले थे, उन्होंने आपस में जोड़े बना लिये। मैंने दास बाबू के साथ जोड़ा बनाया था और श्री रवि आनन्द ने श्री संजय मेहता के साथ एक अन्य जोड़ा बनाया था। श्री आर.के. पाणी निर्णायक थे।
इस खेल में सबको बारी-बारी से एक अवसर दिया जाता था। दो राउंडों में प्रायः सबने फिल्मों के नाम पहचान लिये। इससे सबके प्रायः 2-2 अंक थे। किसी-किसी को एक-एक अंक ही मिला था। नियम यह था कि यदि कोई जोड़ा फिल्म का नाम नहीं पहचान पाता था, तो दूसरे जोड़े से पूछा जाता था।
दूसरे राउंड में जब संजय मेहता एक्टिंग कर रहे थे और रवि आनन्द पहचान रहे थे, तो पर्ची में फिल्म का नाम था- बेताब। इसकी एक्टिंग मेहता जी ठीक से नहीं कर पा रहे थे और इसलिए रवि जी समझ नहीं पा रहे थे। तब उन्होंने फिल्म के एक दृश्य की एक्टिंग की। इस दृश्य में फिल्म का हीरो सनी देओल हीरोइन अमृता सिंह के बाल पीछे से पकड़कर उसे जबर्दस्ती चूम लेता है। जैसे ही मेहता जी ने ऐसी एक्टिंग की, वैसे ही मैं फिल्म का नाम समझ गया, क्योंकि यह फिल्म मैंने देख रखी थी। रवि आनन्द ने यह फिल्म देखी नहीं थी, इसलिए वे नहीं समझ पाये। जब उनका समय समाप्त हो गया, तो मुझसे पूछा गया, क्योंकि अगली बारी हमारी थी। मैंने तुरन्त बता दिया कि फिल्म का नाम ‘बेताब’ है। इस तरह हमारी जोड़ी तीन अंक लेकर जीत गयी। इस खेल में काफी समय लग गया था और बहुत हंगामा भी हुआ था।
अन्त में तम्बोला खेला गया। इस खेल में मेरी रुचि नहीं थी, इसलिए केवल देखता रहा। इस खेल के बाद सब अपने-अपने घर चले गये।
इस पिकनिक में अजय अग्रवाल ने मेरे साथ एक मजाक किया। हुआ यों कि वहाँ जो छोटे-छोटे बच्चे आये थे, मैं उनकेे साथ एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठकर फोटो खिंचवा रहा था। एक सबसे छोटा बच्चा, शायद अजय अग्रवाल का, मेरी गोद में था। बाकी आसपास बैठे हुए थे। अजय अग्रवाल फोटो खींच रहे थे। उन्होंने जाने कब एक मजदूर औरत को बच्चों के पास दूसरी तरफ बैठा लिया और उसे मिलाकर फोटो खींच लिया। मुझे कुछ पता नहीं था। जब फोटो छपकर आया, तो सब खूब हँसे। मैंने बाद में उस फोटो में से उस औरत का फोटो काटकर फेंक दिया था। उस पिकनिक के कई फोटो अभी तक मेरे पास सुरक्षित रखे हुए हैं।
(जारी…)
यह किश्त कल मैंने पोरबन्दर से दिल्ली – देहरादून की यात्रा करते हुए रेल में पढ़ी थी, आज पुनः पढ़ी. रोचक घटनाओं का वर्णन किया गया है। वर्णन अच्छा लगा। कल की किश्त की प्रतीक्षा है।
आभार, मान्यवर !
जिज्ञासा बढती जा रही है
आभार, विभा जी ! यह जिज्ञासा लगातार बढ़ेगी क्योंकि इसमें आपको पढने को बहुत कुछ मिलेगा.
bahut badhiya
धन्यवाद, कमल जी. पहली बार आपने कमेन्ट करने की कृपा की है.