होली पर दोहे
दहे होलिका वैर की, खिले प्रेम प्रह्लाद |
सदय दृष्टि प्रभु की रहे, बरसे बस आह्लाद ||१
इस होली सुन लीजिए, इतनी सी फ़रियाद |
आज चमन को कीजिए काँटों से आज़ाद ||२
प्रगटे मनु तिथि पूर्णिमा, उत्सव हुआ अपार |
जगती के प्रारम्भ का, वासंती त्यौहार ||3
इत हाथों में लाठियाँ, उत है लाल गुलाल |
बरसाने की गोपियाँ, नन्द गाँव के ग्वाल |४
कहाँ क्रूर अति पूतना, कहाँ सुकोमल श्याम |
अद्भुत लीला आपकी, हर्षित गोकुल धाम ||५
गुँझिया से मीठे लगें,गोरी तेरे बोल|
गारी पिचकारी हुई,रंग माधुरी घोल ||६
कहाँ सुहाए चंद्रिका, मन तो हुआ चकोर |
राधे सबसे पूछतीं, कित मेरा चितचोर ||७
कान्हा कैसी बावरी, मूढ़ मति भई आज |
नैना चाहें देख लें, डरूँ न छलके राज ||८
कितना छिपकर आइए,गोप-गोपिका संग |
राधे से छिपते नहीं, कान्हा तोरे रंग ||९
तन-मन सारे रँग गए, खूब चढ़ा ली भंग |
कैसे भूलूँ भारती, मैं केसरिया रंग ||१०
फागुन ने मस्ती भरी, कण-कण में उन्माद |
विरहिन का जियरा करे, अब किससे फ़रियाद ||११
बड़ा दही-कर छोड़कर, कांजी संग मुस्काय |
रसगुल्ले का ले गई, गुँझिया हृदय चुराय ||१२
एक वेश-परिवेश सब, रंग-उमंगों डूब |
गले मिलन रसिया चले, हुई धुलाई खूब ||१३
देख सयानी बेटियाँ, किसका रंग गुलाल |
कैसे पीले हाथ हों, सोचे दीन दयाल ||१४
— ज्योत्स्ना शर्मा
बेहतरीन दोहे !
हृदय से आभार !