बाल कहानी : चंचलू और पेड
तड़ाक ! तड़ाक ! की आवाज जंगल की शांति को भंग कर रही थी, चोटी का पसीना एड़ी से होते हुए जूते को गीला कर रहा था। इन सब बातों से बेखबर चंचलू कुल्हाड़ी चलाए जा रहा था। तभी धड़ाम की आवाज के साथ पेड़ जड़ से अलग हो ओंधे मुंह गिर पड़ा। आह भर के चंचलू ने कुल्हाड़ी एक ओर फेंकी और विश्राम करने वहीं पत्थर पर बैठा ही था कि ’’हाय! हाय!’’ की आवाज सुन चोंक पड़ा। यूं लग रहा था ज्यों आवाज किसी गहरे गढ्ढे से आ रही हो । चंचलू ने खड़े होकर इधर-उधर नजर दौड़ाई , लेकिन वहां आस पास तो कोई न था ! वह हैरान परेशान आवाज की ओर कान लगा ढूंढने लगा तो पाया आवाज तो पेड़ के पास से ही आ रही थी। चंचलू थर थर कांपने लगा, शरीर से फिर से पसीना चूने लगा। वह बुरी तरह घबरा गया कि कहीं कोई अनर्थ तो नहीं हो गया।
उसे लगा शायद कोई व्यक्ति पेड़ के पास होगा और पेड़ के गिरने के साथ ही इसके नीचे आ गया हो! कहीं पेड़ के नीचे जमीन में न धंस गया हो ! ’’ हाय राम ये क्या अनर्थ हो गया। है मेरे प्रभु! इसकी रक्षा करो ’’ बचाओ… बचाओ …, अरे कोई है… ! जल्दी आओ अनर्थ हो गया ! सुनो गांव वालों जल्दी आओ’’ उसके मुंह से बरबस ही आवाजें आने लगी । हालांकि वहां दूर दूर तक कोई घर गांव नहीं था। सौभाग्य से वहीं कुछ दूरी पर कुछ लकड़हारे उसी ओर आ रहे थे। उन्होंने चंचलू की आवाज सुनी तो दौेड़े दोैड़े आए। ’’क्या हुआ भाई क्यों चिल्ला रहे हो ? ’’ उनमें से एक ने पूछा। चंचलू की आंखों से अश्रु धारा अविरल बह रही थी, आँंखें पोंचते हुए बोला ’’मुझ से बहुत बड़ा पाप हो गया है … कोई पेड़ के नीचे आ गया है! ये सुनो रोने की आवाज । ’’
लकड़हारे भी घबरा गए ! आवाज तो सच में बिलकुल किसी मनुष्य की लग रही थी। उन्होंने आव देखा न ताव धना धन पेड़ पर कुल्हाड़ियां बरसानी आरम्भ कर दीं। देखते ही देखते उन्होेंने पेड़ को छोटे छोटे टुकड़ों में काट दिया। लेकिन ये क्या! अब तो आवाज पेड़ के हर टुकड़े से आने लगी। पेड़ के टुकड़ों को उन्होंने उलट पलट कर देखा लेकिन उनके नीचे तो कोई भी नहीं था। सभी हैरान थे। फिर ये आवाजें आ कहां से रही हैं ! ….फिर चंचलू ने दोनो हाथ जोड़ पेड़ से प्रार्थना की ’’ है वृक्ष देवता ! मुझे माफ करो , कोई भूल चूक हो गई हो तो मुझे दंड दो ! हम सब बड़े हैरान है ये आवाजें कहां से आ रही हैं ! अब आप ही हमारी शंका का समाधान कीजिए। ’’
तभी जवाब आया ! हां चंचलू तुम पापी तो हो! तुमने अनगिनत पेड़ों की बलि ली है लेकिन लगाया एक भी नहीं ! हां एकदम सही सोच रहे हो मैं पेड़ ही हूं।’’ सभी लोग बड़े हैरान थे , सिर में हाथ लगा कर बैठ गए और पेड़ की बात बड़े ध्यान से सुनने लगे। पेड़ ने आगे कहना शुरू किया। ’’आज से चालीस वर्ष पहले की बात है एक बीच उड़ कर आया और यहां गिरा। पूरे छह महीने तक वह पानी की एक बूंद पाने को आकाश की ओेर निहारता रहा। हवा बहती रही, मिट्टी ,पत्ते और पत्थर ऊपर गिरते रहे। इस प्रकार बीज जमीन में कुछ ओर नीचे धंसता रहा। तभी वर्षा की एक कोमल फुहार पड़ी और बीज खुशी से झूमने लगा। अंगड़ाई लेकर आंखें खोली तो इस अद्भुत संसार को देख कर मन ही मन प्रफुलित हो उठा। अब तक उसके भीतर संचित भोजन भंडार भी समाप्त हो चला था। कुछ ही दिनों में वह अपनी कोमल पत्तियों से , सूर्य का प्रकाश लेकर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाना सीख गया। वह धीरे धीरे बढ़ने लगा…।’’
पेड़ कहता जा रहा था और वहां सिर में हाथ लगाए बैठा चंचलू और लकड़हारे शांतचित्त हो सुन रहे थे। पेड़ ने आगे कहा , ’’ चंचलू जानते हो वह बीज किसका था ? …वह मेरा ही बीज था। इस प्रकार इस जगत में मेरा जन्म हुआ । एक दिन की बात है एक नन्हीं सी बालिका मेरे पास आई और मेरे कोमल पत्तों को अपने नन्हें नन्हें कोमल हाथों से सहलाया । मेरा मन प्रफुलित हो उठा। मुझे रोमांच का अनुभव हो रहा था। स्वतः ही मेरे मन में मानव जाति के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा और दिन प्रतिदिन बढ़ता ही गया।
आते जाते राही मेरी ठण्डी छांव में बैठकर अपनी थकान मिटाते और सुकून पाते। कुछ तो जाने अनजाने मेरी पत्तियों और टहनियों को यूंँ ही मरोड़ कर चले जाते लेकिन में उनकी इस भूल के लिए उन्हें कभी कुछ न कहता। एक दिन तो हद ही हो गई, एक मनुष्य मुझ पर चढ़ा और मेरी सारी की सारी टहनियां काट डालीं। मैं तड़पता रहा चिल्लाता रहा लेकिन वह न माना। अपनी पत्तियों से वंचित हो मैं बहुत दिनों तक भोजन नहीं बना पाया और मुझे अपने भीतर संचित भोजन का ही प्रयोग करना पड़ा।
मुझे मनुष्य पर क्रोध तो बहुत आया लेकिन …. थोड़े ही दिनों में मेरी नई पत्तियां आने लगीं और में पुरानी बातों को भूल कर फिर से मनुष्य की सेवा में लीन हो गया। चंचलू ! मैं तो कहता हूं जो कुछ भी मेरे पास है सब तुम मनुष्यों के लिए ही तो है। मेरा तो समस्त जीवन ही आप लोगों के लिए है। लेकिन यदि आप हमें नष्ट ही कर दोगे तो क्या आप लोग जीवित रह पायोगो! हम वृक्ष ही हैं जो प्राण वायु को साफ कर आपको देते हैं अन्यथा समस्त चराचर जगत से प्राणियों का समूल नाश हो जाएगा। मेरे कंद मूल और फल खाकर ही जंगली जानवर अपना पेट भरते हैं। है मनुष्य ! तुम इतना भी भूल गए कि आदिमानव मेरे फल फूल खाकर ही जीवित रहता था और मानव बनने तक भी पूर्णतः हम पर ही निर्भर हुआ करता था। ’’ चंचलू ने असंख्य वृक्ष अब तक काटे थे लेकिन आज उसे एहसास हो रहा था कि जैसे उसने इतने मनुष्यों का कत्ल किया हो । उसकी आँंखों से आसुओं की धार रूकने का नाम नहीं ले रही थी । पेड़ ने आगे कहा ’’ चंचलू मैंने तो हमेशा ही आप लोगों का भला किया … और आपने इसका ये बदला दिया! तुमने तो हद ही कर दी । तुम तो वृक्ष जाती के विनाश पर ही तुले हो ! हाय रे मनुष्य ! इतना क्या बुरा किया था हमने तुम्हारा।’’
पेड़ की करूण गाथा सुन चंचलू फूट फूट कर रो पड़ा। वह पेड़ से लिपट कर बार बार क्षमा याचना करने लगा। ’’मुझे क्षमा कर दो है वृक्ष देवता! मैं बहुत पापी हूं। मैंने अपने लालच के लिए सैंकड़ो वृक्षों का कत्ल किया। लेकिन अब मेरी आँंखें खुल गई हैं … मैं वचन देता हँूं कि आज के बाद मैं एक भी पेड़ नहीं काटूंगा , इतना ही नहीं मैं दूसरों को भी ऐसा करने से रोकूंगा। मैंने आज तक जितने भी वृक्ष जाने अनजाने काटे हैं उन से दो गुणा वृक्ष लगाउंगा और उनकी रक्षा करूंगा। दूसरे लकड़हारों ने भी अपने अपने औजार हाथ में लेकर सौगंध खाई कि आज के बाद भूखे रह लेंगे लेकिन पेड़ कभी न काटेंगे। पेड़ ने चंचलू से विदा ली और शांत हो गया। सभी लकड़हारे भारी कदमों से अपने अपने घरों की और चल पड़े। आज उनकी पीठ पर कोई बोझा नहीं था लेकिन कदम पहले से भी अधिक भारी महसूस हो रहे थे।
चंचलू ने पेड़ को दिया वचन निभाया और एक हजार पेड़ों का एक जंगल बसाया। जिसे चंचलू जान से भी ज्यादा प्यार करता है।
— अनन्त आलोक
पर्यावरण बचाने की प्रेरणा देती अच्छी कहानी !