कविता

अन्ना जी भूले लोकपाल

अन्ना जी ने लोकपाल पर, जब बिगुल बजाया था,

संत पुरुष के समर्थन हेतु, जन सैलाब लहराया था।

नहीं लालसा थी अन्ना को, धन दौलत औ शोहरत की,

देश बचाने के मकसद से, तब जन जन आगे आया था।

लोकपाल का पीट ढिंढोरा, शोहरत दुनिया में पायी थी,

काला था या गोरा धन था, वहाँ चन्दा खूब उगाहा था।

इस चंदे के घाल-मेल में, अरविन्द को डाँट लगाई थी,

भ्रष्ट आचरण सहन ना होगा, यह वादा याद दिलाया था।

कहाँ गया वह लोकपाल बिल, कहाँ गए धरने- प्रदर्शन,

अबकि सत्ता की खातिर,अरविन्द ने भी बिसराया था।

उड़ते हो तुम आज गगन में, हद से ज्यादा इतराते हो,

भ्रष्ट कांग्रेसी नेता का विमान, जिंदल ने भिजवाया था।

अन्ना इज्जत बहुत आपकी, सारा देश सदा करता,

भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई, परचम तुमने फहराया था।

वामपंथ के बन सहयोगी, क्यों लक्ष्य से भटक रहे हो,

लोकपाल की बात करो, जिससे युवाओं को भरमाया था।

 

डॉ अ कीर्तिवर्धन

One thought on “अन्ना जी भूले लोकपाल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सही लिखा है आपने. अन्ना जी भ्रष्टाचार मिटाने और लोकपाल लाने की बातें करके लोकप्रियता लूट ले गए, लेकिन वास्तव में इन्होने कुछ नहीं किया. ममता बनर्जी और उसके मंत्रियों/नेताओं ने सारदा चिटफंड घोटाला किया, उससे सारे अखबार भरे रहे, लेकिन अन्ना ने इस पर एक शब्द नहीं बोला. इसलिए बहुत से लोग अन्ना को पाखंडी कहते हैं.
    आपने अपनी कविता से उनका असली चेहरा सामने ला दिया है.

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