“मन”
मन है बहुत चंचल,
करता हृदय हलचल।
कहता वहाँ तक चल,
जहां समस्या का हल।
कोशिश में रहता हरपल,
तैयार हो जाता हर क्षण।
समय गवाता हर वक्त ,
घुमना चाहता हरदम।
काम अच्छा हो या बूरा,
पहाड़ नदी हो या झरना।
बादल क्षितिज या धरा,
लगाता चारो तरफ चेतना।
सर्वस्व जगह है निर्बलीक,
कार्य लिए हैं सार्वजनिक ।
सारी बातों को करता लिक,
यही है मन की रीत।।
ati sundar
बहुत बहुत धन्यवाद निवेदिता जी।
बहुत सुन्दर
हौसला अफजाई के लिए सधन्यवाद श्रीमान जी।
बढ़िया.
हृदय तल से आभार।