थक गई हूँ मैं
बहुत थक गयी हूँ
इस युग के शहर,गाँव
गलियों में घुमते घुमते …
तुम मुझे अपनी जटाओ के जंगल
में छुपा लो तो
हो जाएगा अन्धेरा चारो
दिशाओ में
फिर गहरी नींद आयेगी…
जब तुम जंगल की करवट
बदलोगे तो मैं जाग
जाउंगी और उठ कर बच्चो
की तरह किलकारी मारूंगी,
उछलकूद करूंगी
तेरे सीने पर दौड़ लगाऊँगी
तेरी मिट्टी पर अपने निशान छोड़
फिर गुम हो जाऊँगी
इस युग की गलियों में ही
खामोश कही …
यू मुझे पता हैं तुझे तंग करता हैं
मेरा हर वक्त बच्चा होना …
सदा के लिए नही आयी
बहुत थक गयी हूँ बस
उकताई नही हूँ
इसलिए
वापिस आ जाऊँगी ..!!
…रितु शर्मा …
सुंदर भाव
वाह ! वाह !! बहुत खूब !!!