कविता

रेगिस्तान

10672287_1582286658675442_8351059754032581665_n

सुनो
सोना चाहती हूँ
बस एक
पुरसुकून नींद…
कितना थकी हुई हूँ
नही लगा सकते
तुम अंदाजा…
हूँ कितनी सदियों से
प्यासी…
और
तुम
कितने जन्मों से
रेगिस्तान…!!

…रितु शर्मा …

रितु शर्मा

नाम _रितु शर्मा सम्प्रति _शिक्षिका पता _हरिद्वार मन के भावो को उकेरना अच्छा लगता हैं

One thought on “रेगिस्तान

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

Comments are closed.