नूतन गीत
तुम्हारे रखते ही कदम
उपवन की उदास कलियाँ गयी खिल
पत्तियों की नोकों पर
अटकी हुई बूंदें गयी गिर
बढने लगा नदी का जल स्तर
प्यासे खेतों की माटी तक पहुँचा नीर
निशाने पर लगा
तुम्हारी नज़रों का तीर
मेरे मन आकाश में
ऊग आया इन्द्रधनुष
मेरे ह्रदय के गमले में
प्रेम का सुप्त बीज हुआ अंकुरित
मेघ बनकर मैं बरसने लगा
भादों सा रिमझीम
सोंधी सोंधी महक छोड़ गयी तुम
मेरी साँसों में वह हो गयी विलीन
तलाशता रहा तुम्हे
पर तुम तो हो आकृति विहीन
फिर भी तुम्हे याद करता हूँ
वियोग ही है प्रीत
मेरे स्पंदन की लय पर
गूँज उठा स्नेह का नूतन गीत
किशोर कुमार खोरेन्द्र
बहुत खूब .
shukriya
अच्छी कविता !
than u