संकल्प शक्ति
संकल्प शब्द सम् तथा कल्प से मिलकर बना है। सम् का अर्थ है सम्यक्-अच्छी प्रकार। कल्प का अर्थ है निर्णय, निर्माण और प्रेरणा। आत्मा से प्राप्त संदेश या आदेश को क्रियान्वित करने का अडिग निर्णय करके कार्य की सम्मति के लिए मस्तिष्क और इन्द्रियों को आदेशात्मक प्रेरणा देना संकल्प है। यही मन का स्वाभाविक धर्म या कार्य है। मन के संकल्प मस्तिष्क के चिन्तन को उत्तेजित और उद्बोधित कर विश्लेषणपूर्वक जो योजना बनाते हैं उन्हें शरीर की इन्द्रियां क्रियान्वित करती हैं। मनुस्मृति में कहा गया है कि यज्ञ, व्रत, नियम, धर्म सब संकल्पज्य हैं। संकल्प से ही सब की पूर्ति होती है। इच्छा संकल्प की जननी है। हम जिस वस्तु या कार्य की इच्छा करते हैं, उसी की प्राप्ति के लिए संकल्प करते हैं। मन का कार्य आत्मा से प्राप्त संदेशों को क्रियान्वित करने का संकल्प करना है। यजुर्वेद के शिवसंकल्प सूक्त के प्रथम छह मन्त्रों में संकल्प-विकल्पात्मक मन के कल्याणकारी धर्म विषयक इच्छा वाला होने की प्रार्थना की गई है।
यह भी कहा गया है कि मन की अद्भुत शक्ति को पहचानें, क्योंकि यह अमर ज्योति है। इसके महत्त्व को समझ कर इसे पवित्र बनाएं, जिससे हमारा ज्ञानयज्ञ बड़ी सुन्दरता से चले। मन ही ज्ञान, विज्ञान, उपासना और कर्म का आधार है। आत्मस्मृति का मूल मन ही है। उसकी एकाग्रता से अपने स्वरूप को देखा जा सकता है। हम अपने इस नितान्त चंचल मन को श्रद्धा द्वारा नियंत्रित कर निर्मल बनाते हुए कल्याणकारी संकल्पों वाला बनाएं। सभी का मन संकल्प वाला होता है पर सभी मनीषी और धीर नहीं होते हैं। जब मन सत्य संयम, दृढ़ता, पवित्रता तथा शिवसंकल्पों से युक्त होता है तभी मनीषी और धीर पुरुषों का व्यक्तित्व प्राप्त होता है। मन जितना निर्मल होता है, संकल्प उतने ही दूरगामी, अनन्त और असीम होते हैं। कर्मेन्द्रियां और ज्ञानेन्द्रियां अश्व हैं। आत्मा अपने स्व विवेक से सम्पन्न होकर अपने को शिवसंकल्पों से युक्त कर मन को कुशल सारथी बना लेता है, तब संकल्पों में शक्ति व शुचिता आ जाती है।
ऋग्वेद के एक मन्त्र में कहा गया है-‘‘मेरे मन का दृढ़ संकल्प सत्य हो’’। संकल्प के बल पर ही कम संख्या और शक्ति होते हुए भी सिकन्दर ने कई देशों पर विजय प्राप्त की। विश्व के अनेक कार्य संकल्पशक्ति के बल पर ही पूर्ण किए जा सकते हैं।
— कृष्ण कान्त वैदिक
बहुत सुन्दर लेख .
धन्यवाद
अच्छा लेख.