कविता रेगिस्तान रितु शर्मा 25/02/201525/02/2015 सुनो सोना चाहती हूँ बस एक पुरसुकून नींद… कितना थकी हुई हूँ नही लगा सकते तुम अंदाजा… हूँ कितनी सदियों से प्यासी… और तुम कितने जन्मों से रेगिस्तान…!! …रितु शर्मा …
वाह वाह ! बहुत खूब !!