आत्मकथा

आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 11)

दूसरे आॅपरेटर जिनके साथ मेरी बहुत घनिष्टता थी वे थे सरदार कुलदीप सिंह। वे बहुत सज्जन और हँसमुख व्यक्ति थे। उनमें कई प्रतिभाएँ थीं। वे एच.ए.एल. के अपने काम में तो माहिर थे ही, इसके अलावा बहुत अच्छे पेशेवर फोटोग्राफर थे। वे विवाह-शादियों तथा अन्य कार्यक्रमों में फोटोग्राफी किया करते थे और अच्छी आमदनी कर लेते थे। एक बार मैंने भी उनसे संघ के गणवेश में अपना फोटो खिंचवाया था। वह युग स्टिल फोटोग्राफी का था। बाद में जब वीडियो फोटोग्राफी होने लगी, तो उन्होंने वैसा ही कैमरा खरीद लिया था। मैंने उनसे फोटोग्राफी के कई गुर सीखे थे। एक पुराना कैमरा भी मैंने उनसे खरीदा था, हालांकि मैं उसका ज्यादा उपयोग नहीं कर सका।

सरदार कुलदीप सिंह नृत्य के बहुत शौकीन थे और काफी अच्छा डांस कर लेते थे। लखनऊ में हर साल क्लार्क्स अवध होटल में नये साल की पूर्व रात्रि को एक नृत्य प्रतियोगिता होती थी। श्री कुलदीप सिंह और उनकी पत्नी प्रायः हर साल ही वहाँ से उस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीत लाते थे।

एक बार मुझे शिमला से हि.प्र. सरकार की कम्प्यूटर कम्पनी हिपट्राॅन से इंटरव्यू के लिए काॅल लैटर मिला। मैंने शिमला जाना तय किया और कुलदीप सिंह से कहा कि आप भी मेरे साथ चलिए। वे खुशी से तैयार हो गये। मैंने पंजाब मेल से अम्बाला तक जाने का आरक्षण करा लिया, जो पहले वेटिंग में मिला, फिर पक्का हो गया। मुझे उम्मीद थी कि कम्पनी से मुझे आने-जाने का किराया मिल जाएगा और जो थोड़ा सा अतिरिक्त खर्च होगा वह मैं कर लूँगा। हालांकि कम्पनी ने कोई किराया नहीं दिया, लेकिन इस यात्रा में बहुत आनन्द आया। अम्बाला से हम किसी गाड़ी में कालका तक आये और वहाँ से टाॅय ट्रेन में बैठे, जो जाने के लिए तैयार ही खड़ी थी। पहाड़ी ट्रेन में बैठने का वह मेरे लिए पहला (और अभी तक अन्तिम) अवसर था। इस रेलगाड़ी में सफर बहुत मजेदार रहा। बल खाती हुई ट्रेन सैकड़ों सुरंगों से होकर निकलती थी और बीच-बीच में छोटे-छोटे साफ-सुथरे स्टेशनों पर रुकती थी।

उसी गाड़ी में सूरत से आये हुए 7-8 लड़कों का एक समूह भी यात्रा कर रहा था। वे लड़के एक-एक क्षण का आनन्द ले रहे थे। वे हर स्टेशन पर उतरते थे और चलती गाड़ी में चढ़ते थे। रास्ते में किसी पहाड़ी पर या मकान की छत पर कोई सुन्दर लड़की दिखाई पड़ जाती थी, तो वे उसकी ओर हाथ हिलाते थे। कभी-कभी वह लड़की भी हाथ हिला देती थी, तो सब बहुत खुश होते थे। यह आनन्ददायक सफर दोपहर 12 बजे के बाद शिमला में समाप्त हुआ। हमने रिज का नाम सुना था। इसलिए वहीं होटल में ठहरने का विचार किया। हमें यह अंदाज नहीं था कि वह कितना ऊपर है। इसलिए अपने पास जो थोड़ा सा सामान था, उसे लेकर चढ़ने लगे। जल्दी ही हमारी साँस फूल गयी। एक कुली हमारे पीछे पहले से ही लगा हुआ था। वह बार-बार कह रहा था कि आप इसे ऊपर तक नहीं ले जा पायेंगे। हारकर हमने उससे सामान ढुलवाया। उसने इसके 10 रुपये लिये, जो उन दिनों के हिसाब से हमें ज्यादा लग रहे थे, परन्तु मजबूरी थी।

रिज पर पहुँचकर हमने एक होटल में कमरा ले लिया। वहाँ का पानी बहुत ठंडा था। होटल से गर्म पानी मिल सकता था, परन्तु वे बहुत देर लगा रहे थे। इसलिए हमने थोड़े-थोड़े पानी से किसी तरह नहाने की रस्म निभायी और कपड़े बदलकर पहले खाना खाने गये। वहाँ अच्छे होटल थे, लेकिन काफी मँहगे थे। इसलिए हम मिडिल शिमला में गये, जो रिज से थोड़ा नीचे है। वहाँ से उतरने के लिए सीधा सा रास्ता भी है। वहाँ हमने एक ढाबे पर खाना खाया। वहीं पास में ही बस अड्डा था। वहाँ गन्दगी बहुत थी। रिज उसकी अपेक्षाकृत काफी साफ-सुथरा था।

मिडिल शिमला से रिज आते समय हम रास्ता भूल गये, लेकिन एक पुलिसवाले से पूछकर ऊपर आ गये। फिर हम रिज पर काफी देर बैठे और वहाँ आसपास घूमे। माल रोड पर भी टहले। परन्तु उस दिन रविवार था, इसलिए खास चहल-पहल नहीं थी। बाजार कुछ महँगे भी लगे। हमने सोचा कि हिमाचल प्रदेश में सेब पैदा होता है, तो यहाँ सस्ता होना चाहिए। परन्तु जब हमने उसका रेट पूछा तो वह लखनऊ से भी ज्यादा था। वैसे टूरिस्ट सेंटरों में सभी चीजें ऐसे ही मँहगी मिलती हैं। हम भारतीय भले ही अपनी अतिथि सत्कार की परम्परा का दम्भ करते हों, लेकिन बाहरी लोगों को जी भरकर लूटते हैं।

रिज के पास से ही एक रास्ता जाखू चोटी की ओर जाता है। परन्तु शाम होने लगी थी, इसलिए वहाँ सुबह जाने का विचार किया। रात्रि को हमने रिज पर ही चाट वगैरह खायी और होटल में आकर सो गये। उस समय हल्की बारिश भी हुई थी, इससे काफी ठंड हो गयी थी।

मेरा इंटरव्यू दूसरे दिन 10 बजे से था। समय पर्याप्त था। इसलिए सुबह जाखू पर चढ़ने लगे। लगभग 45 मिनट में हम जाखू की सबसे ऊँची चोटी पर पहुँच गये। वहाँ एक बड़ा मंदिर भी है। आसपास का दृश्य बड़ा सुहावना है। वहाँ से पूरा शिमला दिखायी पड़ता है। वहाँ बन्दर बहुत हैं, जो जूते-चप्पलें उठा ले जाते हैं और फिर खाने-पीने की चीजें देने पर ही लौटाते हैं।

कुलदीप सिंह ने वहाँ कई फोटो खींचे। तीन-चार फोटो मेरे भी खींचे, जो बहुत अच्छे आये हैं। करीब घंटाभर जाखू पर रहने के बाद हम नीचे लौटे। फिर मैं हाथ-पैर धोकर कपड़े बदलकर इंटरव्यू देने गया। इंटरव्यू का स्थान वहाँ से काफी दूर लोअर शिमला में था। अतः मुझे पूछते-पूछते नीचे ही नीचे उतरना पड़ा। खैर, किसी तरह पहुँच गया। वहाँ इंटरव्यू के नाम पर तमाशा हो रहा था। शायद उन्होंने चयन पहले ही कर लिया था और बाहर वालों को 2-2 मिनट में फालतू के सवाल पूछकर टरका रहे थे। उसी समय संयोग से मेरे ही सेक्शन के प्रमोद मोहन चौबे भी 11 बजे के आसपास इंटरव्यू देने आ गये। उनका भी वैसा ही इंटरव्यू हुआ। करीब 1 बजे हम वहाँ से छूटे। पहले होटल आकर कुलदीप सिंह को साथ लिया, फिर मिडिल शिमला में पहुँचकर खाना खाया।

हमारा लौटने का कोई रिजर्वेशन नहीं था और कुलदीप को चंडीगढ़ या अम्बाला जाना था। इसलिए यह विचार बना कि बस से शिमला से अम्बाला चला जाये, फिर वहाँ से कोई गाड़ी पकड़कर लखनऊ पहुँच लेंगे। हिमाचल प्रदेश की बस सेवा अच्छी है, अतः आराम से मात्र 3-4 घंटे में अम्बाला पहुँच गये। हालांकि पहाड़ी रास्तों में जब बस मुड़ती थी, तो मुझे बहुत डर लगता था। कुलदीप सिंह वहाँ से अपने रास्ते कहीं चले गये और मैं तथा चैबेजी एक ट्रेन में भीड़ में ठुँसकर लखनऊ आये। अम्बाला में एक कुली ने हमें गाड़ी में चढ़ाने के पैसे लिये थे और किसी तरह जनरल बोगी में घुसा दिया था। लखनऊ आने तक हमारे पास बस इतने रुपये रह गये थे कि टैम्पो में बैठकर घर तक आ गये।

कुलदीप सिंह की रुचि बाद में योग की तरफ हो गयी थी। वास्तव में उन्हें कुछ जुकाम वगैरह की शिकायत थी, जिसके लिए मैंने उन्हें योग करने का सुझाव दिया था। योग करते-करते उनकी रुचि बढ़ी और उन्होंने योग में कोई डिप्लोमा कोर्स भी कर लिया। आगे चलकर उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा में भी कोई डिप्लोमा कोर्स किया और अपने घर पर ही प्राकृतिक चिकित्सा करने लगे। एच.ए.एल. की नौकरी वे तब भी करते रहे। अब वे डा. कुलदीप सिंह के नाम से जाने जाते हैं। उन्होंने सिंगार नगर लखनऊ में अच्छा मकान बना लिया है। उसमें एक बार मैं भी गया था और खाना भी खाया था। बहुत दिनों से एच.ए.एल. की तरफ नहीं गया हूँ, इसलिए उनसे मुलाकात नहीं हुई है। पता नहीं कि वे अब एच.ए.एल. में सर्विस करते हैं या नहीं। शायद रिटायर होने वाले होंगे।

(जारी…)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

4 thoughts on “आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 11)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    आज तो सिम्ले की सैर करा दी भाई साहिब . आज कुछ स्वास्थ ठीक नहीं था, फिर भी चलो शिमले की सैर हो गई . कुछ लोग कहते हैं कि शिमले बन्दर बहुत होते हैं , किया यह सही है बताने की कोशिश करनी.

    • विजय कुमार सिंघल

      हा…हा…हा… भाई साहब, बन्दर वैसे तो सभी जगह होते हैं, पर पहाड़ी इलाकों में कुछ ज्यादा ही. शिमला में जाखू चोटी पर बहुत बन्दर थे. इसी तरह नैनीताल, मसूरी में भी बहुत बन्दर हैं. लेकिन हमारे आगरा, मथुरा, लखनऊ और कानपुर शहर बंदरों के लिए बहुत बदनाम है. ये घरों में बहुत नुक्सान करते हैं.

  • Man Mohan Kumar Arya

    जीवन का यह भाग भी रोचक एवं अनुभवों से पूर्ण है। विभागों में चयन में धांधली, टूरिष्ट स्थानों पर महंगाई तथा यात्रा की कठिनाई का अच्छा वर्णन। है. आज की कड़ी पढ़कर प्रसन्नता हुई। धनयवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार, महोदय !

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