कहानी

टेढ़ी खीर

उस रात मैं सोया नहीं था, रात के करीब ३ बज रहे थे और मैं कुर्सी पर बैठा टेबल पर रखे कॉफ़ी के कप की तरफ टकटकी लगाए देख रहा था, अचानक मुझे ख्याल आया कि मैं उसे फ़ोन करना भूल गया और शायद वो मेरा इन्तजार कर रही होगी, उससे मेरा झगडा हुआ था, जैसा हर दो प्रेमी प्रेमिकाओं के बीच होता है, शायद इसीलिए मुझे नींद नहीं आ रही थी आज कुछ जमकर हमारा झगडा हो गया था, शादी को लेकर, वो मुझसे एक साल के अंदर शादी के लिए कह रही थी और मैं इतने जल्दी तैयार नहीं था, बहुत सोच विचार दिमाग में घूम रहा था, एकाएक मुझे याद आता था कि आज के झगड़े में हमने कितना कुछ एक दुसरे को बोल दिया था, यहाँ तक की उसने मुझसे कहा कि मैंने उसका इस्तेमाल किया है, शायद ऐसा नहीं था, वो जब मेरे सामने फूट फूटकर रो रही थी तब मैं उसे गले भी नहीं लगा सका मेरी प्रतिबद्धता नहीं बल्कि अपनी बात पर अड़ने की वजह से, अब लग रहा था कि काश उसे गले लगाकर चुप कर देता, मैं कभी फ़ोन उठाता और फिर रख देता था, ये सोचकर कि कहीं वो मुझसे नाराज तो नहीं होगी? मैं क्या बात करूँगा? मैं सोचता रहता और बार बार फ़ोन उठाता रखता, उसके रोने का ख्याल आते ही रूह कांप जाती, लगभग यही एक बात थी जो बार बार नींद आने पर भी जगाये रखी थी कि वो कैसी होगी? कहीं उसकी शादी किसी और से तो नहीं हो जायेगी? वो मुझे भुला देगी? मैं उसके बिना कैसे जी पाऊंगा? मेरा क्या होगा, वगैरह वगैरह!! आज उससे मिलकर लौटा तबसे बात नहीं की, मैं बार बार सोचता और सोचते सोचते झपकी लगती तो कुर्सी पर गर्दन लटक जाती, लेकिन फिर अचानक कुछ ख्याल आता और आँखें खुलतीं, मेरे ऑफिस का सारा काम हो चूका था, हम दोनों एक ही ऑफिस में थे, सोचता क्यूँ ना ऑफिस के काम के बहाने फोन कर लूँ, लेकिन इतनी रात गए ये तो बेच्कूफी होगी, कॉलेज के समय से हम एक दुसरे को जानते थे, और ऑफिस में नए नए आकर एक दुसरे को समझने भी लगे, अक्सर जब पहले कभी झगडा होता था तो मैं जाकर कभी माफ़ी नहीं मांगता था, वो ही आकर मुझे मनाती थी, फिर हँसते हुए हम घर लौट जाते थे, आज मैं ऑफिस से मुंह लटकाकर लौटा था, रूम का लॉक खोलकर सीधा इस टेबल के सामने आकर बैठ गया था, थोडा सा मन चुरा चुराकर ऑफिस का काम निपटाया था और फिर दो रोटियों में ही पेट भर लिया था, फिर बाकी का काम करते हुए ऐसे ही बैठा सोचता रहा था, लगभग एक घंटा और, ४ बज गए मेरा सर कुर्सी पर ही लटक गया था और फ़ोन जस का तस पड़ा रह गया, लगभग सुबह ७ बजे मेरे फ़ोन की घंटी बजी, उसी का फ़ोन था मैंने फ़ोन उठाया पर मैं खामोश था उधर से आवाज आई, ‘ओह्ह…गुड मोर्निंग जानू,….आई लव यू…रात को तुम्हे फ़ोन करने वाली थी, लेकिन मेरे पास बैलेंस ही नहीं था, िफ़र सोचा तुम्हारा फ़ोन आएगा, लेकिन याद आया तुम्हारे पास का बैलेंस भी ऑफिस पर मैंने ही अपनी दोस्त से बात करते हुए उडा दिया था…!! ये बातें सुनकर मेरी सारी नींद भाग गयी, ऐसी फौरी आयी कि एक पल को लगा फ़ोन पर ही इसे गले लगा लूँ, मैंने बड़ी हिम्मत से फिर पूछा,’अच्छा तो तुम गुस्सा नहीं थीं?’ उसने कहा, ‘गुस्सा? नहीं जान हमारे बीच तो ये चलता रहता है, मैं तुमसे गुस्सा तो कभी हो ही नहीं सकती!’ फिर वो बताने लगी कि रात में वो जल्दी सो गयी थी और आज उसे बड़ी सुकून भरी नींद आयी, फिर कहा कि जल्द ऑफिस में मिलते हैं और उसने फ़ोन रख दिया, फ़ोन रखते ही मैंने तीन बार अपना सर उस कॉफ़ी के कप पर उठाकर पटका और हँसते हुए तब मुझे समझ में आया कि लड़की को समझना कितना टेढ़ी खीर है, ये आंसू बहाकर आपको कभी भी बहका सकती हैं! 😛

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

7 thoughts on “टेढ़ी खीर

  • संगीता सिंह 'भावना'

    अच्छी कहानी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी कहानी , शादी से पहले की बातें कितनी अच्छी लगती हैं .

  • विजय कुमार सिंघल

    हा हा हा अच्छी कहानी है पर यह तो आम है

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    🙂

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