तुम यदि हो पत्थर
तो मै हूँ स्व -आलोकित शीशा
तुम हो यथार्थ
मै हूँ स्वप्न सरीखा
पुष्प नये नये खिलाने जग में
हर रस
सब रंग ..का मन हैं जीता
कभी कभी छल के बाहुपाश से घिरकर
सत्य भी कल्पना सा लगता रीता
चेतना की नदी का विस्तार कहाँ हो पाता
जड़मय तट के बिना
तुम हो यदि माटी का तन
मै उस सुंदर काया मे भरा हुआ
प्रेम मधु सा हूँ ..मीठा
तुम यदि हो पत्थर
तो मै हूँ स्व -आलोकित शीशा
*किशोर कुमार खोरेंद्र
बहुत खूब .
thankx a lot
वाह वाह
hausala afjaaii ke liye aabhaar