गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – चैनलों की शाख पर…

चैनलों की शाख पर अब झूठ का अम्बार है ।

सिर्फ तारीफों की चर्चा में बिका अखबार है ।।

रोज कलमें हो रहीं गिरवीं इसी दरबार में ।

फिर कसीदों से कलम का हो रहा व्यापार है।।

कब्र से बोली ग़ज़ल मेरा तसव्वर खो गया ।

अब खुशामद के लिए बिकने लगा फनकार है ।।

नुक्कड़ो पर भेड़िये हैं नोचते हर जिस्म को ।

हर मुसाफिर को नकाबों की यहां दरकार है ।।

माँ की ममता बाप का साया कहाँ परदेश में ।

रोटियों के खौफ से टूटा हुआ ऐतबार है ।।

हम एक थे, हम एक हैं ,हम एक ही होंगे सदा ।

वोट का मजहब ये बातें कर गया इनकार है।।

जिसमें जितना दम था वो बोया जहर इस मुल्क में।

कातिलों के हाथ से गिरती कहाँ सरकार है ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]

One thought on “ग़ज़ल – चैनलों की शाख पर…

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    तिरपाठी जी, एक एक लाइन में बहुत कुछ कह दिया .

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