गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : होली आई है

उड़े अबीर-गुलाल कि होली आई है.
करते रंग कमाल कि होली आई है.
भाँग छानकर हुए रवाना झाँसी वो,
पहुँच गए भोपाल कि होली आई है.
बच्चों को हम क्या समझाए ऐसे में,
बाबा करें धमाल कि होली आई है.
खेलें रंग कुंवारे देवर भाभी से,
भैया हैं बेहाल कि होली आई है.
पत्नी से वे कहते-तुम मैके जाओ,
मैं जाता ससुराल कि होली आई है.
रंग भरी पिचकारी मारी साली ने,
जीजा हुए निहाल कि होली आई है.
लपट-झपट कर कपड़े सालों ने फाड़े,
वे दिखते कंगाल कि होली आई है.
चाहे जैसे रंग खेल लो मस्ती में,
पर मत करो बवाल कि होली आई है.
— डॉ.कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674

One thought on “ग़ज़ल : होली आई है

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    डाक्टर जी, होली की याद दिला दी , कविता को पड़ कर लगा कि होली आज ही है.

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