ग़ज़ल- भीगे मन का कोना-कोना
गाल गुलाबी लब पर लाली तन चाँदी मन सोना।
इस होली पी के सँग भीगे मन का कोना-कोना।।
मन प्यासा था मेघ प्यार का लेकर फागुन आया।
अब तो आकर मेरे दिल में बीज प्यार के बोना।।
लाज-शरम-मर्यादा कैसी मौसम भी तो देखो।
तन से अंतर्मन तक भीगे यों तुम मुझे भिगोना।।
रंगों की झीनी चादर सा है स्पर्श तुम्हारा।
अंग-अंग लहराए ऐसे आज मुझे छू लो ना।।
होली का जादू छाया है मेरे मन पर कैसा।
ढूंढ सकूँ ना खुद को तुम में ऐसे चाहूँ खोना।।
मेरी चाहत के पंछी को पिंजरे में मत रक्खो।
इस धरती से उस अम्बर तक उसको उड़ने दो ना।।
— अर्चना पांडा
बहुत सुन्दर रचना .