उपन्यास अंश

उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 37)

33. वीर पुत्र का दुर्बल पिता

1306 में देवलदेवी को हिरासत में लेने के बाद गुजरात के सुबेदार अल्प खाँ और नायब मलिक काफूर की संयुक्त सेना देवगिरी 1307 में पहुँची और वहाँ जमकर विध्वंस किया। अपनी प्राणेश्वरी पत्नी के छिनने और अनुज भीमदेव की वीरगति से उत्पन्न हुए रोष के साथ युवराज शंकरदेव ने मुस्लिम सेना का घोर प्रतिरोध किया पर अपने पिता राजा रामदेव के ढुलमुल रवैय्ये के कारण ज्यादा कुछ न कर सका। अपने पुत्र युवराज शंकरदेव की सलाह न मानते हुए राजा रामदेव ने एलिचपुर के प्रांत की मालगुजारी दिल्ली सल्तनत को दे दी। इसके अतिरिक्त वह स्वयं दिल्ली में सुल्तान के सम्मुख उपस्थित होने को राजी हो गया।

संधि की अन्य शर्तों के अनुसार असंख्य हीरे-जवाहरात, सोने-चाँदी के साथ तीन हजार सुंदर युवतियाँ भी सुल्तान के हरम के लिए राजा अपने साथ ले जाने को तैयार हुआ। दिल्ली कूच करने की पूर्व संध्या पर युवराज अपने पिता राजा रामदेव को धिक्कारते हुए बोला ”सच कहूँ महाराज तो कभी-कभी हमें आपको पिता कहने में अब लाज का अनुभव होता है।“

”क्यों युवराज? ऐसा कौन-सा कृत्य हमसे हो गया जो तुम हमारे पिता होने पर लज्जित हो रहे हो?“

”जिसकी पुत्री और पुत्रवधू को संधि की अपमानजनक शर्तों के कारण यवनों की दासी बना दिया गया है, उसी यवन सुल्तान का आथित्य स्वीकार करके क्या आपको लाज का अनुभव नहीं हो रहा?“

”लज्जा? किस बात की लज्जा युवराज? कि दिल्ली सम्राट अलाउद्दीन खिलजी ने अपने संदेश में हमें मित्र कहा और अपने इस मित्र को उन्होंने अपने अतिथि के रूप में दिल्ली आने का निमंत्रण दिया। यह लज्जा का नहीं युवराज सम्मान का विषय है।“

”और जो तीन हजार सुंदर युवतियाँ महाराज अपने साथ दिल्ली लिए जा रहे हैं। जिनके साथ सुल्तान और उनके अमीर व्यभिचार करेंगे संभवता यह भी महाराज के लिए सम्मान का विषय होगा।“

”युवराज आप राजनीतियों की पेचदिगियों में अधिक न उलझें अभी हम देवगिरी के महाराज हैं और यह युवतियाँ देवगिरी के महाराज की ओर से दिल्ली के सुल्तान को दी जाने वाली शिष्टाचारवश भेंट है।“

युवराज शंकरदेव तनिक हँसते हुए, ”क्षमा करें हम भूल गए थे हम देवगिरी के महाराज से बात कर रहे हैं। अपनी ललनाओं को भेंट कीजिए उनको बनाइए सुल्तान की दासी, पर स्मरण रहे आपके इस कृत्य के लिए इतिहास आपको कभी क्षमा नहीं करेगा।“

”जाओ युवराज, अभी हमारे कक्ष से निकल जाओ, कहीं ऐसा न हो हम आपको क्षमा के स्थान पर दंड दे बैठें।“

”जाता हूँ महाराज, विवश हूँ आप मेरे पिता हैं। जाइए दिल्ली और जाकर देखिए अपनी पुत्री और पुत्रवधू को म्लेच्छों की क्रीतदासी के रूप में। जाइए वह आपका स्वागत करेंगी, अपनी इस स्थिति के लिए आपको धन्यवाद देंगी।“

इतना कहकर युवराज, राजा के कक्ष से बाहर निकल आते हैं और राजा उन्हें बस देखता भर रहता है।

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) मन्नत का तारा (उपन्यास) 6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 7) वर्जित (उपन्यास) 8) अरीबा (उपन्यास) 9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 11) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 12) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 13) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 14) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास ) 15) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 16) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 17) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 18) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 19) हो न हो (काव्य संग्रह) 20) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशन - खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, कादम्बनी, बुद्ध्भूमि, अविराम,लोकसत्य, गांडीव, उत्कर्ष मेल, अविराम, जनहित इंडिया, शिवम्, अखिल विश्व पत्रिका, रुबरु दुनिया, विश्वगाथा, सत्य दर्शन, डिफेंडर, झेलम एक्सप्रेस, जय विजय, परिंदे, मृग मरीचिका, प्राची, मुक्ता, शोध दिशा, गृहशोभा आदि में. पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव, पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश ईमेल [email protected] blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com 09619483963

2 thoughts on “उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 37)

  • विजय कुमार सिंघल

    यह हमारे इतिहास की बिडम्बना है कि यहाँ वीरों के साथ साथ बड़ी संख्या में कायर भी पैदा हुए। इसीकारण देश विदेशियों का दास बन गया।
    रोचक प्रस्तुति !

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