बिहार में राजनीति तले दबी शिक्षा
हमारा बिहार राज्य पहले से ही राजनेताओं के राजनीति एवं भ्रष्टाचार के वजह से गरीब तथा पिछड़ा हुआ है। यहाँ के छोटे से लेकर बड़े लोग या छोटे कर्मचारी से लेकर बड़े अफसर तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। जब हमारे माननीय मुख्यमंत्री श्री लालूप्रसाद यादव जी के समय में ही शिक्षा की नीति ऐसी बनी थीं, उसमें बिहार के बच्चों का भविष्य कम तथा अपनी राजनीतिक रोटी सेकना ज्यादा था।
किसी देश या प्रदेश की शिक्षा एक अच्छे गुणवत्ता पूर्ण शिक्षक पर निर्भर करती है। एडम्स का कहना है कि –“शिक्षक ही शिक्षार्थी को अनन्त तक प्रभावित करता है।” अगर शिक्षक ही अच्छे ज्ञान वाले न हो तो अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि वहाँ के बच्चों का क्या भविष्य होगा। जो केन्द्र स्तर पर शिक्षा नीति बनती है उसी तर्ज़ पर सभी राज्यों में शिक्षा नीति बनाई जाती है और उसी के अनुरूप चलने पर अच्छी शिक्षा बच्चों को मिलती है या बच्चों का अधिक से अधिक कल्याण हो सकता है।
यहाँ शिक्षा विद नहीं बल्कि राजनेता लोग ही शिक्षा की नीति बनाते हैं और उसे लागू करते हैं, दिखावा करने के लिए शिक्षा नीति बनाने की समिति का गठन करते हैं। समिति के द्वारा सौपे गये सिफारिशों को ताख पर रखकर अपने बनाये हुए नीति को लागू करते हैं ।
सोचने वाली बात है कि पूर्व मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव जी अपने कार्यकाल में मैट्रिक पास लोगों को ही शिक्षक बहाली में जगह दिया करते थे और नौकरी के दौरान प्रशिक्षण दिया करते थे। उनके कार्यकाल में बी.एड., बी.टी.सी. का कोई महत्त्व नहीं था। इतना ही नहीं इसके बाद सर्वशिक्षा अभियान के तहत शिक्षामित्र की बहाली हुई वो भी मैट्रिक पास पर लेकिन मेरिट सूची के आधार पर, जिसमें ऐसे लोग आ गये जिन्हें खुद पढने की आवश्यकता है पढायेगे क्या? ये लोग जब आये खाली जगह को पूरा किये। जो शिक्षा बच्चों को मिलनी चाहिए उसको पूरा नहीं कर पाये। इनके कार्यकाल में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षकों के कमी के साथ-साथ गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा भी नहीं मिल पाई बच्चों को।
माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सिंह जी की सरकार भाजपा के गठबंधन से आयी इनके शासन का बिहार में शुरूवात हुआ। इनका रवैया शिक्षा के मामले में पिछले सरकार की अपेक्षा बहुत ही ज्यादा खराब रहा है। देखने में तो लग रहा है कि शिक्षकों की संख्या बढी है लेकिन गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की नहीं। ये महोदय अपने वोट के चक्कर में पूरे बिहार के बच्चों के भविष्य से खेलवाड़ कर बैठे। सब नियम कानून को ताख पर रखकर ये अपना नियम बनाकर शिक्षक की बहाली लेना शुरू किये, वो भी इन्टर के मेरिट पर अप्रशिक्षित लोगों को। सोचने वाली बात है सिर्फ इन्टर पास किया हुआ अभ्यर्थी अप्रशिक्षित ही हमारे यहाँ विद्यालयों में शिक्षक बन गये और बच्चों को पढाते हैं।
इस तरीके से कई चरणों में बहाली करते हुए तीन लाख पैसठ हजार प्रारंभिक विद्यालयों में शिक्षकों का नियोजन (प्रशिक्षित एवं अप्रशिक्षित) कर चुके हैं, जिसमें अन्तिम चरण में २०११-१२ में लगभग सवा लाख के करीब शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करके (जिसमें अप्रशिक्षित लोग भी शामिल हैं) आये हैं।
यहाँ के नेता जी लोग अपना वोट बनाने के लिए अपने प्रदेश के जनता के प्रति किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। चाहे हमारा बिहार बर्बाद क्यों न हो जाए। शिक्षा के मामले में यहां की सरकार काफी ढीली है। हद तो तब हो गई टी०जी०टी०एवं पी०जी०टी० की बहाली में अप्रशिक्षित लोगों को भी जगह दी गयी, वो भी मेरिट के आधार पर। बिना बी०एड० के ही यहाँ पर हाईस्कूल एवं इण्टर में शिक्षक नियुक्त किये गये हैं। सबसे सोचने वाली स्थिति है कि क्या होगा हमारे प्रदेश का भविष्य। इन्हीं लोगों के ऊपर पूरे बिहार की जनता का भविष्य टिका हुआ है। कहावत है तालाब में एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है। यहाँ की सरकार ने बहुत सी मछलियाँ पाल रखीं हैं अपने तालाब रूपी प्रदेश में। बहुत सी और एक में क्या फर्क अन्दाज़ा लगाया जा सकता कि क्या होगा बच्चों का भविष्य।
बिहार की शिक्षा अन्धकारमय है इसका कारण यहाँ की राजनीति है। बिहार की शिक्षा राजनीति की वजह से पंगु हो चुकी है। इन्हें कोई ताकत नहीं सुधार सकती। ऐसा इसलिए होगा जितने शिक्षकों की नियुक्ति हुई है, वो ६० वर्षीय हैं। इन्हें कोई भी आने वाली सरकार हटा नहीं सकती इसलिए यही शिक्षक बरकरार रहेगे और मछली वाली कहावत लागू रहेगी। शिक्षा को चौपट करने का सबसे ज्यादा सहयोग यहाँ की राजनीति एवं राजनेता लोगों की है यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है मुझे ।
(यह मात्र केवल अपना विचार है किसी पर आरोप नहीं )
— रमेश कुमार सिंह
यही सच्चाई है अपने प्रदेश में श्रीमान जी।भविष्य तो खतरे हैं ही।
अच्छा लेख. इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ कि अच्छे शिक्षकों पर ही शिक्षा का भविष्य टिका हुआ है. योग्य अध्यापक खानापूरी भले ही कर लें, लेकिन शिक्षा के स्तर को ऊपर नहीं उठा सकते.
शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की नियुक्ति में राजनीति बहुत गहरे तक घुस गयी है. इस समस्या का कोई समाधान मुझे तो नज़र आता नहीं है.
बहुत बहुत धन्यवाद श्रीमान जी।