लम्बी कहानी : मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस (2)
||| सुबह 12:30 |||
मोबाइल की घंटी की आवाज़ से मेरी नींद खुली। मैंने समय देखा और मोबाइल में देखा तो मेरे नागपुर वाले कस्टमर का फ़ोन था। उसे रीसिव किया, वो कह रहा था कि उसे अचानक ही बॉम्बे जाना पड़ रहा है। इसलिए वो मुझसे मिल नहीं पायेंगा. उसने अपॉइंटमेंट कैंसल कर दी थी। मैं सोच में पड़ गया मैंने बॉस को फ़ोन लगाया। उसे लेटेस्ट डेवलपमेंट के बारे में बताया उसने मुझे कोलकता वापस बुला लिया। मैं उठकर बैठ गया। सर में हल्का सा दर्द था, शायद शराब का ही नशा था। शराब से मुझे मायकल याद आया। देखा तो वो वैसे ही सामने बैठा था।
उसने कहा – “अब ठीक हो ?” मैंने कहा – “हां, लेकिन टूर कैंसिल हुआ है। अब कोलकता जाना है। देखता हूँ टीटी से बात करके आता हूँ।” मैं गया टीटी से मिला. अपनी इसी टिकट को मैंने कोलकता तक एक्सटेंड करवा लिया। मैंने फिर प्रभु को धन्यवाद दिया। आजकल टिकट जैसे चीज के लिए भी प्रभु की गुहार लगानी पड़ती है। मैं बाथरूम गया फ्रेश हुआ, चेहरे पर बहुत सा पानी मारा, थोडा अच्छा लगने लगा। वहीँ कोच अटेंडेट से चाय मांगी उसने पैंट्री से चाय लाकर दी। वहीँ पर खड़े खड़े चाय पिया और बाहर की ओर देखने लगा।
कोई स्टेशन था। मैंने अटेंडेट से पुछा, “कौनसा स्टेशन है” उसने कहा “भुसावल है सर !” मैं देख ही रहा था कि मेरे पीछे से एक आवाज आई – “कौनसा स्टेशन है।” मैं मुड़ा और देखा, एक शानदार और खुबसूरत औरत खड़ी थी उसके पीछे एक मोटा सा आदमी भी था, मैंने कहा – “भुसावल है जी।” गाडी अब धीमे हो रही थी। प्लेटफार्म आ रहा था। मैंने गौर से औरत और आदमी को देखा। औरत कुछ दिलफेंक किस्म की लग रही थी। मैंने उसे मुस्कराते हुए देखा। उसने मुझे देखा। वो मुस्करायी। मैंने मन ही मन कहा, “अब ठीक है कुमार भाई सफ़र सही कटेंगा।” मैंने पुछा – “कहाँ जा रहे हो आप।” जवाब मुझे उसके साथ के आदमी ने दिया, कोलकता जा रहे है।” मैंने उसे बड़े गौर से देखा था। अमीरी उसके पूरे व्यक्तित्व में छायी हुई थी। शानदार सूट पहने हुए था। हाथो की दसो उँगलियों में सोने की हीरे जड़ी अंगूठियाँ थी। चेहरे पर अमीरी का घमंड ! मैंने अपने आप से कहा – “ए टिपिकल केस ऑफ़ वोमेन मीट्स मनी !!!” मैं मन ही मन मुस्कराया और मेरे मुह से निकल पड़ा “हूर के साथ लंगूर“, उसे ठीक से सुनाई नहीं दिया वरना वो मुझे पक्का पीट देता। औरत ने मुझसे पुछा – “आप कहाँ जा रहे हो।“ मैं कुछ कहता, इसके पहले ही आदमी ने फिर कहा, “अरे कोलकता ही जा रहे है न।“ मैंने हंस कर कहा- “हाँ जी हां।“
मैं कुछ पूछता इसके पहले ही प्लेटफ़ॉर्म पर गाडी रुक गयी। मैं नीचे उतर कर बुक्स की दूकान में गया, अखबार लिया और वापस लौटा। देखा तो वो आदमी और औरत प्लेटफ़ॉर्म पर कुछ खा रहे थे। मैंने मन ही मन कहा -“टिपिकल इंडियन पसेंजेर्स।” मैंने देखा तो मायकल उस औरत और आदमी की ठीक पीछे ही खड़ा था और उन्हें बड़े गौर से देख रहा था। मैं उसे आवाज़ देने ही वाला था कि टीटी ने मुझसे कहा, “आज तो गाडी बिलकुल खाली है।“ मैंने कहा- “हां जी, नहीं तो गीतांजलि तो भरी हुई होती है।“ टीटी ने चाय के लिए ऑफर किया, मैंने चाय ले ली, उसने कहा- “बस अगले महीने से दुर्गा पूजा की भीड़ आ जायेंगी जी।“ मैंने सर हिलाया। हम ऐसे ही बात करते रहे। फिर उससे इजाजत ली और अपने केबिन में पहुंचा। देखा तो मायकल वहीं पर बैठा हुआ था। मैंने कहा – “यार कुछ चाय लोंगे या कुछ खाने को ला दू।” उसने कहा- “नहीं जी। आओ बैठो।“
थोड़ी देर में गाडी चल पड़ी। मायकल से मैंने पुछा, “बिजनेस किस चीज का है।“ उसने बताया कि ड्राई फ्रूट्स का है। वो गोवा और केरला से ड्राई फ्रूट्स लेकर हर जगह बेचता है। छोटा सा बिजनेस है।
उसे मैंने बताया कि मैं एक इलेक्ट्रिक स्विच बनाने वाली कंपनी में काम करता हूँ। मार्केटिंग मेनेजर हूँ और लगातार बस घूमते ही रहता हूँ।
उसने अपने बैग से एक डब्बा और निकाला उसमे कुछ ड्राई फ्रूट्स थे। वो मुझे दिए और मैं बड़े चाव से खाने लगा। मैंने फिर उससे पुछा – “यार मायकल आपके शौक क्या क्या है।“ उसने कहा – “म्यूजिक, बुक्स और घूमना।“ मैंने ख़ुशी से कहा, “ऐक्साक्ट्ली ये तो मेरे भी शौक है। यार संगीत जीवन है।“ उसने फिर बैग में हाथ डाला और एक छोटा सा म्यूजिक सिस्टम निकाला और उसे केबिन के प्लग बॉक्स में लगा कर शुरू कर दिया। किशोर कुमार की आवाज़ से डब्बा भर गया। मैं तो ख़ुशी से उछल पड़ा और उठाकर मायकल को गले लगा लिया। एक अजीब सी गंध उसके कपड़ो से आ रही थी, और मायकल का बदन भी बड़ा कठोर सा प्रतीत हुआ। खैर छोडो मुझे क्या।
हम लोग बहुत देर तक गाने सुनते रहे।
फिर मायकल ने मुझसे कहा – “कुमार, मुझे तुम्हारी लिखी कहानिया बहुत पसंद है।“
मैं चौंक गया, मैंने कहा – “यार तुम्हे कैसे पता?”
उसने कहा, “कुमार मैं तुम्हारी कहानियाँ पढ़ते रहता हूँ। तुम तो बहुत अच्छी अच्छी जासूसी कहानियां लिखते हो। मैं तो फैन हूँ।“
मैंने अचरज से पुछा कि उसने मुझे पहचाना कैसे। उसने कहा- “आपकी फोटो से। आपकी किताब के पीछे आपकी फोटो लगी हुई रहती है। बस इसी से पहचान लिया।“
उसने फिर मुझसे हाथ मिलाया। मुझे अच्छा लग रहा था। पढने वाले पाठक किसे अच्छे नहीं लगते !
हम लोग फिर बहुत देर तक मेरी कहानियो के प्लॉट्स पर बाते करने लगे।
||| दोपहर 2:30 |||
मैंने ट्रेन की खिड़की से बाहर देखा, एक स्टेशन आ रहा था, शेगांव, मैंने कहा- “यार मायकल यहां की कचोरियाँ बहुत अच्छी होती है। मैंने अभी लेकर आता हूँ।“ मैं प्लेटफार्म पर उतरा और कचोरी ली. देखा तो वही औरत और आदमी भी कचोरी ले रहे थे। मैंने उन दोनों को हाय कहा और अपने कोच में आ गया। कोच में देखा तो मायकल नहीं था। मैंने सोचा बाथरूम गया होंगा। खिड़की से देखा तो वो उस औरत और आदमी के पीछे ही खड़ा था। मुझे ये बंदा कुछ अजीब सा लग रहा था। खैर मुझे क्या, सफ़र में तो एक से बढ़कर एक नमूने मिलते है। मैं बाथरूम गया और वापस आया तो मायकल अपनी सीट पर बैठा हुआ था। मैंने उसे कचोरी दी, हम दोनों कचोरी खाने लगे।
मायकल ने फिर व्हिस्की की बोतल निकाली और मुझसे कहा, “एक – एक हो जाए।“ मैंने कहा, “हो जाए जी।“ अब तो कोलकता जाना था इसलिए कोई हिचक नहीं थी. बस खाना पीना और सोना। हम दोनों फिर पीने लगे।
मैंने कोच अटेंडेट से खाना मंगवाया। मायकल ने खाने से मना कर दिया। मैंने उसे जबरदस्ती खाने को कहा। हमने खाना खाया और मैंने अपने बेड पर लेट गया।
मायकल ने कुछ देर की चुप्पी के बाद पुछा – “यार कुमार ये जो प्लॉट्स तुम सोचते हो कहानी के लिए ये कैसे आते है। मतलब तुम कैसे प्लान करते हो।“ मैंने कहा – “कुछ नहीं जी। पहले एक लूज स्टोरीलाइन बनाता हूँ, फिर उसके कैरेक्टर्स बनाता हूँ, और फिर स्टोरी और उन कैरेक्टर्स को आपस में बुन लेता हूँ। बस हो गयी कहानी तैयार !”
मायकल ने पुछा, “जासूसी कहानी में जो मर्डर का प्लान तुम लिखते हो, वो कैसे लिखते हो” मैंने कहा- “यार बहुत सी किताबे पढ़ी हुई है, फिल्मे देखी हुई है और अपने समाज में भी कुछ न कुछ अपराध तो होते ही रहता है। बस उसी को बेस बनाकर प्लाट बनाता हूँ।“
मायकल ने कहा – “अच्छा ये बताओ कि क्या कोई फुलप्रूफ मर्डर का प्लान होता है।“ मैंने कहा, “सारे प्लान ही फुलप्रूफ होते है। बस उस प्लान को एक्सीक्यूट करते हुए कुछ गलती हो जाती है जो अनएक्सपेक्टेड होती है। इसी के चलते अपराधी पकड़ा जाता है।“
मायकल चुप हो गया। थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा – “मुझे जासूसी कहानियो में बहुत रूचि है. मैं भी एक कहानी लिखना चाहता हूँ। आप थोड़ी मदद करो।“
मैं उठकर बैठ गया। मुझे भी अब मज़ा आ रहा था। मैंने कहा, “बताओ, क्या प्लाट है?”
मायकल ने कहा, “एक औरत अपने पति से बेवफाई करती है। उसे ज़हर देती है और मार देती है। और किसी दुसरे अमीर आदमी से जुड़ जाती है, अब उस औरत को उसकी बेवफाई की सजा देना है।“
मैंने कहा “यार तो बहुत पुराना प्लाट है। कई कहानिया लिखी जा चुकी है और फिल्मे भी बनी हुई है।“
मायकल ने कहा, “फिर भी बताओ कि उसे कैसे सजा दिया जाए।“
मैंने कहा, “दो सवाल है, पहली बात तो ये कि उसे सजा कौन देंगा। और दूसरी बात कि उसे सजा क्या देना है।“
मायकल बहुत देर तक चुप रहा। फिर मुझसे पुछा – “क्या उसे मौत की सजा दी जाए।“ मैंने कहा- “सजा देना बड़ी बात नहीं है. कहानी में हम डाल देंगे कि उसका मर्डर कर दिया गया, लेकिन सजा कौन देंगा.”
मायका बहुत देर तक चुप रहा, फिर उसने कहा, “यार तुम लेखक हो तुम ही कुछ सुझाव दो।“
मैं सोचने लगा। बहुत देर तक सोचा। सोचते ही रहा। मैंने फिर कहा – “एक बात हो सकती है। उस मरे हुए आदमी का कोई दोस्त उसे सजा दे.”
मायकल ने कहा, “हां ये हो सकता है लेकिन अगर उस आदमी का कोई दोस्त न हो तो।“ मैंने कहा, “ऐसे कैसे हो सकता है, हर आदमी का दोस्त होता है। हाँ ये हो सकता है कि उस आदमी के दोस्त को कुछ पता ही न हो।“
मायकल सोचने लगा। मैंने कहा, “मैं आता हूँ यार दरवाजे से थोड़ी ताज़ी हवा लेकर।“
मैं कोच के दरवाजे पर पंहुचा, वहां वो औरत खड़ी थी और साथ में उसका आदमी भी। मैं भी वहीं पंहुचा। ताज़ी हवा अच्छी लग रही थी। मैंने कहा, “मुझे ऐसे दरवाज़े पर खड़े होकर ताज़ी हवा के झोंके अच्छे लगते है।“ सुनकर उस औरत ने भी कहा, “मुझे भी !” आदमी ने मुझे घूरकर देखा और कहा, “सभी को अच्छी लगती है ताज़ी हवा !”
मैंने देखा तो मेरे पीछे मायकल भी खड़ा था ! मायकल उस औरत को देख रहा था ! मैं मुस्करा उठा ! कुछ देर बाद मैं वापस लौट पड़ा।
अपने केबिन में घुसने के पहले मैंने पलटकर देखा। औरत मुझे ही देख रही थी. मैं मुस्कराया। और भीतर घुसा। मायकल अपनी सेट पर बैठा था। मैंने कहा, “अरे अभी तो तुम वहां बाहर थे अभी इतनी जल्दी कैसे आ गए।“ मायकल ने कहा – “कुछ नहीं, जब तुम उस औरत को देख रहे थे, तो मैं वापस लौट पड़ा !”
(जारी…)