कविता

कविता——‘मेरा मन’

एक फूल के सुखद एहसास सा है
मेरा मन ……..
आओ और महसूस करो इसकी
भीनी खुश्बू………
मैं बिखेर दूंगी इसकी खुश्बू और
महक उठूँगी तुम्हारे आस पास
हवा के झोंकों सा है मेरा मन
खोल दो,अपने दिल कि खिड़की
मेरे लिए …….
और महसूस करो इसकी ताजगी
आखिरी दम तक बहती जाउंगी
तुम्हारे आस पास ……

समंदर कि गहराइयों सा है
मेरा मन ……..
आओ और समा जाओ मुझमें
मैं समेट लूंगी तुम्हें अपने दिल की
गहराइयों में …….

पूर्णमासी कि चाँद सा उज्जवल है
मेरा मन……….
ठहरूंगी मैं रात भर तुम्हारे सानिध्य के
इंतजार में ….
आओ और निखरी चांदनी में छेड़ दो अपनी
बांसुरी की मधुर तान और सहेज लो मुझे
अपने मन के अविरल उद्यान में…………संगीता सिंह ‘भावना’

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

One thought on “कविता——‘मेरा मन’

  • रमेश कुमार सिंह

    सुंदर भाव।

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