मधुमास
वन में
खिल गए पलाश
आ गया मधुमास
सरस हुए बादल
प्यार की बूंदों की
हुई बरसात
उड़ा कर गोरी का आँचल
रसिक हुई बयार
छेड़ गयी अमराई में
कोयलिया मधुर तान
गुनगुनाने लगे भंवरें
उपवन में
कलियों ने किया श्रृंगार
बज उठे नगाड़े
टहनियों पर
झूम उठे पात पात
सुबह लाल सांझ को
सिंदूरी हुआ आकाश
मन की धीरे धीरे
खुलने लगी हैं गाँठ
आने लगे हैं अधरों पर
भूले बिसरे फाग
काट दिया है मुझे भी
किसी के प्रखर चितवन ने
पतंग सा उड़ चला हूँ
मैं भी उसके पास
गोपियों संग फिर
रचाएंगे कान्हा रास
वन में
खिल गए पलाश
आ गया मधुमास
किशोर कुमार खोरेन्द्र
किशोर भाई , कविता बहुत अच्छी लगी . एक किउरिऐस्ती है , यह जो फूलों की फोटो है इन फूलों में मीठा रस भी होता है ? और इस दरख्त के पत्ते चौड़े चौड़े होते हैं जिस से हल्वाइओन के लिए मथाई पाने के लिए प्लेटें सी बनाते हैं . हमारे भी ऐसे दरख्त बहुत हुआ करते थे जिस को छिछरे या पला कहते थे . किया यह वोही है ? बस एक उत्सुकता ही है .