कविता

लौटना भर है…

हर आना समेटे हैं
लौटकर चले जाना
मुझ तक आया ,लौट गया
तुम तक आकर भी लौट जाएगा

दूर हवा हवा में बहती
पानी पानी नदी में बहता
कुछ तुम बहे
कुछ मै बहता रहा साथ-साथ

जो बहकर निकला रास्ते से
किसी भी मोड़ मुड़ सकता हैं
मुड़ा हुआ ना जाने फिर
किस रास्ते से गुजरेगा

इसबार जब आओ
किसी दरवाजों से होकर मत आना
आना तुम की तुम कभी मत आना
दरवाजों पर चढ़ आए
ताले सालों इन्तजार के
चाबियों का गुच्छा लील गयी
जमीन सूखे जीवन की

खिडकियों पर लगी जंग
आँखों में उतर रही अब
इसबार बरसात में कितना कुछ बहेगा
कुछ दरवाजे
कुछ खिडकिया
कुछ आँखे
कुछ दीवार की रंगत
नाव एक पन्ना कविता

बहकर जाता ना जाने किस रास्ते गुजरेगा
गर पहुचे तुम्हारे आगन से
हाथ डुबो धकेल देना पानी पीछे को
बहते हुए को बहा देना अगली दिशा

मुझ तक आया लौटा दिया
तुम तक आये तो लौटा देना
लौटना भर हैं आना भर किसीका…

रुचिर अक्षर #

रुचिर अक्षर

रुचिर अक्षर. कवि एवं लेखक. निवासी- जयपुर (राजस्थान). मो. 9001785001. अहा ! जिन्दगी मासिक पत्रिका व अन्य पत्रिकाओं में अनेक कविताएँ , गजलें, नज्में प्रकाशित हुईं. वर्तमान समय में 'दैनिक युगपक्ष' अखबार में नियमित लेखन ।