कविता

अंगड़ाई

 
फूलों पर मंडराने
फिर आ गए मधुप
उड़ने लगे हैं
पराग कणो के धूल
कच्चे आमों की गंध लिए
महकने लगी है बयार खूब
महुवा की बूंदों से
भींग गयी है सुनहरी स्निग्ध धूप

वन हो या उपवन
या गाँवों की अमराई हो
गूंज रही हैं वहाँ कोयल की कूक
पलाश का वृक्ष लेने लगा है अंगड़ाई
डाल डाल पर
निखर आया है उसका अनुपम रूप
सूनी पगडंडियों पर
गुनगुनाते आ रहा हैं मौसम
ओंठों पर हैं उसके मधुर एक धुन

सुस्त पड़े नगाड़ें कह रहे हैं
मचाएँगे हम सब मिलकर
इस बार फिर से धूम
मन में नहीं रहेगा
किसी के कोई उधेड़बुन
न कोई अंकुश
लहरों को लौट कर मत जाने देना
ऐ किनारों
साँझ की अरुणिमा से आरक्त
उनके गालो को
लेना तुम जरुर चूम

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.