गुड़िया
भारतीय नारी
बस इक
गुड़िया बेचारी
लक्ष्मण रेखाओं में
कैद…
आज़ादी की
इक सांस भी है
उस पर भारी
नाम देते हैं अन्नपूर्णा का
भूखे पेट
सोती है बेचारी
लडको से बराबर दर्ज़ा
कहने को है
पर कहाँ जीतने देते हैं उसे
ये राजनीति के व्यापारी
हर ज़ुल्म सह कर
मुस्कुराती
पिता, पति, बच्चों को ही
खुश रखने में
जीवन बिता देती है बेचारी
कहते हैं ये आज़ाद है नारी
इस आज़ादी पर तो गुलाम भी हैं भारी
धन्य है
आजाद देश की
बेचारी
भारतीय नारी
रमा शर्मा
कोबे , जापान
बहुत अच्छी कविता. यही यथार्थ है.