बिन सावन कैसी बरसात !
मौसम ने ली है बेमौसम की करवट,
रंग बदलने में मार खा रही है गिरगिट,
कभी धूप कभी छाया , कभी पानी भरा तूफ़ान,
मार्च के आगाज़ में यह सब देख कर हम हैरान,
न सावन की बरखा सी मिटटी में सौंंधी खुशबू,
न बारिश में बच्चो को खूब नहाने की जुस्तजू,
बस बिजली कड़कती है और खूब पानी बरसता है, ,
बेचारा किसान भी इस तूफ़ान के थमने को तरसता है ,
न कहीं कागज़ की कश्ती , न हरियाली तीज के झूले,
इस बेमौसम बरसात में, सब अपना काम धंधा भी भूले,
हे प्रभु , अब इस बेमौसम की बारिश को यहीं थमने दे,
अब तो होली है, होली है, बस होली का रंग जमने दे.
—जय प्रकाश भाटिया
बढ़िया कविता. इस बेमौसम की बरसात से सभी परेशान हैं. किसानों की चिंता हमें भी खा रही है.
अच्छी कविता .