कविता

बिन सावन कैसी बरसात !

 

मौसम ने ली है बेमौसम की करवट,
रंग बदलने में मार खा रही है गिरगिट,
कभी धूप कभी छाया , कभी पानी भरा तूफ़ान,
मार्च के आगाज़ में यह सब देख कर हम हैरान,
न सावन की बरखा सी मिटटी में सौंंधी खुशबू,
न बारिश में बच्चो को खूब नहाने की जुस्तजू,
बस बिजली कड़कती है और खूब पानी बरसता है, ,
बेचारा किसान भी इस तूफ़ान के थमने को तरसता है ,
न कहीं कागज़ की कश्ती , न हरियाली तीज के झूले,
इस बेमौसम बरसात में, सब अपना काम धंधा भी भूले,
हे प्रभु , अब इस बेमौसम की बारिश को यहीं थमने दे,
अब तो होली है, होली है, बस होली का रंग जमने दे.

—जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

2 thoughts on “बिन सावन कैसी बरसात !

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता. इस बेमौसम की बरसात से सभी परेशान हैं. किसानों की चिंता हमें भी खा रही है.

  • अच्छी कविता .

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