मुलाकात
जबसे हुई है
तुमसे मुलाक़ात
अंगड़ाई लेने लगी है
मेरी हर रात
मुझसे शरारत
करने लगी है मेरी हयात
भांग सी घुलमिल गयी है
तुम्हारी शोखियाँ
मेरी धड़कनो के साथ
सुरूर सा छाया रहता है
मानो एक मधुशाला हो
मेरे भीतर आज
तुम्हारी यादें
मेरी हमसफ़र बन गयी है
जबसे बनी हो
तुम मेरी हमराज
मैं तुम्हारे साये के संग
रहता हूँ
उसी से करता रहता हूँ
मैं संवाद
तुम्हारी छवि मेरी निगाहों में
उभर आई है
होकर एकदम साफ़ और निष्पाप
मेरी नसों में
अमृत का दरिया बहने लगा है
नहीं रहा सराब
सियाह अमावश में
मानो जल उठे हो
हज़ारो सिराज
ख्यालों में तुम हो
ख़्वाबों में तुम हो
नहीं रहा अब शबे -हिज़्र का
चिर अहसास
ओ मेरे हमदम ,मेरे हमराह
तुम्हारे होने से
मेरे आसपास
खिल उठे हैं सदाबहार अमलताश
तुम्हारे सौंदर्य के सरोवर में
डुबकी लगाकर धूप
बाहर निकल कर
आती हुई सी लगती है
जब होता है प्रभात
जबसे हुई है तुमसे
मेरी मुलाक़ात
किशोर कुमार खोरेन्द्र
{हयात =जिंदगी सिराज =दीपक ,शबे हिज्र =विरह की रात ,सराब =मृगतृष्णा}
वाह वाह
बहुत खूब .