तुम मेरे बेताब मन का….
तुम मेरे बेताब मन का दूसरा हिस्सा बन गये हो
जिसे सुनता रहूँ प्रेम का वही किस्सा बन गये हो
हर तरफ तेरे सिवाय मुझे अब कुछ नजर आता नहीं
दो जिस्म पर एक जान सा अटूट रिश्ता बन गये हो
माह ओ अंजुम से घिर कर भी खुद को भुला न था
सिवाय तेरे कुछ याद नहीं ऐसा करिश्मा बन गये हो
रेत कणों सा चूर चूर होकर तन्हा सहरा बन गया हूँ
तेरी बाट जोहती मेरी आँखों की प्रतीक्षा बन गये हो
जिसके प्यार में मैं अब जीना और मरना चाहता हूँ
होम होने के लिए तुम मेरी वही निष्ठा बन गये हो
इब्दिता से अंजाम तक तुमसे भेंट होगी नहीं कभी
मेरी रूह के लिए तुम आदिम मृगतृष्णा बन गये हो
दांव पर लगा दिया हूँ अपने वजूद को मैं तेरी खातिर
अब हारुँ या जीतूं तुम तो मेरी प्रतिष्ठा बन गये हो
किशोर कुमार खोरेन्द्र
बहुत ख़ूब !
thankx a lot