होली खेलूं तुम्हारे संग
हाथों में लेकर आत्मीयता के रंग
मिट जाए सारी कटुता
प्रेम का रह जाए सिर्फ
तुम्हारे और मेरे बीच संबंध
नयनों से नयन मिले
शब्दों के बिना
बाते हो जाए अन्तरंग
मेरी साँसों में बस जाए
तुम्हारे देह की चन्दन सी सुगंध
तुम्हे ही स्मरण करते हो
मेरी हर प्रात: का आरंभ
इस सुखद ..
संयोग का कभी न हो अंत
मन से उन्मुक्त हो दोनों हम
परन्तु
अंग अंग में बना रहे संयम
होली खेलूं तुम्हारे संग
हाथों में लेकर आत्मीयता के रंग
kishor kumar khorendra
होली की हार्दिक शुभकामनायें
sjhukriya vibha ji
बहुत सुंदर कविता !
aabhaar