हास्य मुक्तक
अरे जिनकी मुहब्बत में खुदी को हम भुला बैठे।
वही हमको पकड़वाने सिपाही को बुला बैठे।
तमन्ना थी कि सावन फिल्म इक हमपर भी बन जाये,
पुलिस स्टेशन के पचड़े में वो हमको ही झुला बैठे॥
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बड़ा जालिम जमाना है, नहीं थोड़ा सुहाता है।
बिना चूल्हा जलाए रात-दिन भेजा पकाता है।
गले लगके चहकता चूम लेता ख्वाब में जो भी,
हकीकत में मिले तो याद से थप्पड़ लगाता है॥
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सुनोगे उनके बारे में? बताए हाल देते हैं।
वो अपनी सुलझनों का रोज हमको जाल देते हैं।
खफा रहते तो मिर्चीदार टाइट चाय बन जाती,
अगर खुश हों तो चीनी सब्जियों में डाल देते हैं॥
🙂 🙂
हा हा हा किया बात है.