ग़ज़ल
मिले थे दिल जहाँ दिल से वहीँ इक बार आ जाना,
मुहब्बत कितनी है हम से कसम तुमको बता जाना|
रही मजबूरियां होंगी वफ़ा हम कर नहीं पाए,
निभाया हमने हर रिश्ता सदा ही बा वफ़ा जाना |
तुम्हारे हाथ की छूअन अभी तक हाथ में जिन्दा,
कि फिर इन हाथों में मेरे तू अपना हाथ पा जाना |
तुम्हारी बेरुखी अब तो हुई बर्दाश्त के बाहर ,
कि हमसे हो गई है क्या खता इतना बता जाना |
तुम्हारी हर अदा मेरी ग़ज़ल का एक मिसरा है ,
मुकम्मल हो ग़ज़ल मेरी कमर थोड़ी हिला जाना |
करो तुम जो भी जी चाहे तुम्हारा मुआमला निजी ,
नहीं आलोक फितरत से कभी भी बेवफ़ा जाना |
ग़ज़ल सरल और बहुत मनभावत लगी.
बहुत अच्छी ग़ज़ल।