गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मिले थे दिल जहाँ दिल से वहीँ इक बार आ जाना,
मुहब्बत कितनी है हम से कसम तुमको बता जाना|

रही मजबूरियां होंगी वफ़ा हम कर नहीं पाए,
निभाया हमने हर रिश्ता सदा ही बा वफ़ा जाना |

तुम्हारे हाथ की छूअन अभी तक हाथ में जिन्दा,
कि फिर इन हाथों में मेरे तू अपना हाथ पा जाना |

तुम्हारी बेरुखी अब तो हुई बर्दाश्त के बाहर ,
कि हमसे हो गई है क्या खता इतना बता जाना |

तुम्हारी हर अदा मेरी ग़ज़ल का एक मिसरा है ,
मुकम्मल हो ग़ज़ल मेरी कमर थोड़ी हिला जाना |

करो तुम जो भी जी चाहे तुम्हारा मुआमला निजी ,

नहीं आलोक फितरत से कभी भी बेवफ़ा जाना |

अनन्त आलोक

नाम - अनन्त आलोक जन्म - 28 - 10 - 1974 षिक्षा - वाणिज्य स्नातक शिक्षा स्नातक, पी.जी.डी.आए.डी., व्यवसाय - अध्यापन विधाएं - कविता, गीत, ग़़ज़ल, हाइकु बाल कविता, लेख, कहानी, निबन्ध, संस्मरण, लघुकथा, लोक - कथा, मुक्तक एवं संपादन। लेखन माध्यम - हिन्दी, हिमाचली एंव अंग्रेजी। विशेष- हि0प्र0 सिरमौर कला संगम द्वारा सम्मानित पर्वतालोक की उपाधि - विभिन्न शैक्षिक तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा अनेकों प्रशस्ति पत्र, सम्मान - नौणी विश्वविद्यालय द्वारा सम्मान व प्रशस्ति पत्र - दो वर्ष पत्रकारिता आकाशवाणी से रचनाएं प्रसारित - दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित - काव्य सम्मेलनों में निरंतर भागीदारी - चार दर्जन से अधिक बाल कविताएं, कहानियां विभिन्न बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित प्रकाशन - तलाश (काव्य संग्रह) 2011 संपर्क सूत्र - साहित्यालोक, बायरी, डा0 ददाहू, त0 नाहन, जि0 सिरमौर, हि0प्र0 173022 9418740772, 9816642167

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    ग़ज़ल सरल और बहुत मनभावत लगी.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल।

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