महिला दिवस हाइकु
1
माला की सूता
संजोये दो दो ड्योढीं
सेतु है सुता ।
2
घर गमले
स्त्री-वट हो बोंजाई
रिश्ते सम्भले।
3
बिहँसे हिय
छूती शिखर सुता
नैन में भय।
4
चक्की जोहती
खनकती चूड़ियाँ
दाल दरती ।
5
डूबाती ठाँव
देहली जाती लाँघ
मिटाती छाँव।
6
जीव सींचती
स्थितप्रज्ञ स्त्री धारा
अंक भींचती ।
रागी वैरागी भिक्षुणी तीनों होती है न स्त्री
जीते जी …. जीते
पर्स … हर्ष …. संघर्ष
…… नारी के हिस्से।
आस बुनती
संस्कार सहेजती
सर्वानंदी स्त्री।
सर्वानन्द = जिसको सभी विषयों में आनंद हो
स्त्री की त्रासदी
स्नेह की आलिंजर
प्रीत की प्यासी।
आलिंजर = मिटटी का चौड़े मुंह का बर्तन = बड़ा घड़ा
बन के पुल
सुकुमारी दुल्हन
जोड़े दो कुल।
तोड़ के रुढी
नभ को छूने चली
छोड़ के ड्योढ़ी।
महिला दिवस की शुभकामनायें केवल एक दिन के लिए नहीं सालो साल के लिए ..
एक दिन का नहीं उत्सव
हर दिन का हो उत्साह …..
लड़ाई पुरुष वर्ग से नहीं ….. ये लड़ाई अपने आप से हो ………
1
स्त्री विरुद्ध स्त्री
रूढ़ि सन्नद्ध स्थिति
जटिल मसला ।
2
स्त्री विरुद्ध स्त्री
पुरुष तरफदारी
खोटा समझ ।
3
स्त्री विरुद्ध स्त्री
दमन अनिवार्य
सतही सोच ।
4
स्त्री विरुद्ध स्त्री
सनातनी व्यवस्था
वैर निभाना ।
5
स्त्री विरुद्ध स्त्री
सत्ता परिवर्तन
टूटा सपना ।
6
स्त्री विरुद्ध स्त्री
जुल्मो-सितम ढाती
दूषित मन
बढ़िया.
विभा जी , हाइकु अछे लगे , मैं समझता हूँ जिस दिन और औरत , औरत से दुश्मनी या घृणा छोड़ देगी नारी शक्ति उभर कर निकलेगी , आज जब मैं सास को बहु से , ननद को भाबी से टकराव के बारे में सोचता हूँ तो सोच में पड़ जाता हूँ , रसोई गैस से बहु को सिर्फ दान दहेज़ की खातिर जला देना कहाँ तक उचित है , यह कन्या भरून हत्या में भी बहुत दफा सास का हाथ होता है . बलात्कारी तो जुलम करते ही हैं लेकिन औरत के हाथों औरत पर ही जुलम समझ से कुछ परे है .
आभारी हूँ आपकी ….. आपके विचार मुझे बहुत अच्छे लगते हैं