लोभ
एक बार की बात है कि मैं बनारस जा रहा था। कर्मनाशा स्टेशन से देहरादून एक्सप्रेस पकड़कर मुगल सराय पहुँचते हैं। वहाँ पर गाड़ियां कुछ ज्यादा ही समय रूककर अपनी थकान मिटाती है। मैं गाड़ी से उतरकर बाहर प्लेटफार्म पर आराम करने लगा। सुबह सबको प्यारी लगती है चाहे कोइ भी प्राणी हो। कहावत भी है- ‘सुबह अच्छा नही तो पूरा दिन अच्छा नहीं।’
मैं बाहर आराम से बैठा हुआ था गाड़ी के चलने का इन्तजार था। तभी अचानक मेरी नजर एक कर्तव्यनिष्ठ इन्सान की तरफ गई उसके अन्दर शराफत तथा ईमानदारी झलक रही थी। कहीं से आकर हमारे बगल में बैठा हुआ था। उम्र लगभग ४८-५० रही होगी। वह गरीब था अपनी गरीबी विताने के लिये कोई छोटा सा धन्धा किया हुआ था। फेरी लगाकर कंगन बेचा करता था। इसी धन्धे के बलपर अपने पूरे परिवार का भरण-पोषण करता था। ऐसा मालूम होता था उस समय, उसे पता नहीं था कि आज का दिन कष्टदायी होगा।
तभी उधर अपनी डियूटी का दिखावा करते हुए एक जी०आर०पी० का सिपाही आ रहा था रैंक हवलदार था। कानून के रास्ते पर चलने वाला धिरे-धिरे उस व्यक्ति के तरफ बढ़ा आ रहा था।उस गरीब आदमी के पास आ पहुँचा।
“इस झोला में क्या रखा है”-हवलदार बोला।
“कुछ नहीं हुजूर अपना सामान है”-आदमी बोला।
“कैसा सामान है “-हवलदार बोला।
“छोटा मोटा धन्धा है चूड़ी कंगन बेचने का फेरी लगाते हैं गाँवों में।”-आदमी ईमानदारी दिखाते हुए बोल दिया।
“नहीं तुम झुठ बोल रहे हो दिखाओ।”-हवलदार बोला।
गरीब आदमी अपना झोला खोलकर दिखाने लगा। हवलदार जब उस आदमी का झोला का सामान देखा तो इसके अन्दर लालच जाग उठा ।वह आदमी समझ गया अब मूझे इससे कोई नहीं बचा सकता।जो गरीबों को जीते जागते नोचते हैं ।मैं उस घटना को अपनी आँखों से देख रहा था चुप-चुाप मैं बोल नहीं पा रहा था इसलिए कि मुझे भी उस सिपाही के व्यवहार से डर लग रहा था ।
“ये कंगन कितने में बेचते हो”-हवलदार बोला।
“बहुत ज्यादा नहीं हुजूर चालिस रुपये जोड़ा बेचता हूँ।”-आदमी बोला शालीनता से।
“चलो दो जोड़ी कंगन मुझे दो”-हवलदार बोला।
“लिजीए हुजूर।”आदमी दे दिया सोचा कि पैसे से मांग रहे है।
“पैसा दिजीए हुजूर।”-आदमी आशा लगाकर बोला।
“ऐ चुप पैसा कैसा”-हवलदार रौब से कहा।
उस कंगन के लिये मानो गरीब आदमी का कलेजा ही निकला जा रहा था। पैसा माँग रहा गिड़गिड़ा रहा था। अपनी गरीबी का तकाजा देकर पैर छान लिया। लेकिन दुष्ट हवलदार के उपर कोई दया नहीं आईं। कोई फर्क नहीं पड़ा जब गरीब आदमी अपना कंगन लेने लगा तब उस हवलदार के आँखों पर लोभ रूपी पट्टी बध जाती है और कानून और अपनी वर्दी उसको दिखाई नहीं दिया और अपना असली रूप दिखा ही दिया।
हवलदार उस आदमी को एक हाथ उसके चेहरे पर जड़ दिया। वह मूह के बल प्लेटफार्म पर गिर गया। रूदन करने लगा और उस रूदन भरी आवाज़ में ही अपने कंगन के लिए याचनाएँ, वह हवलदार इतना होने के बाद भी अपने आप को गौरवान्वित हो रहा था कि मैं बहुत अच्छा कार्य किया। लेकिन उसकी अच्छाई में नीचता का भाव दिखाई दे रहा था। कैसी है ये दुनिया,इस दुनिया में कैसे हैं इन्सान और इन इन्सानो में से इन्सानियत की रक्षा के लिए रखे गये हैं। इस तरीके की हैवानियत पर उतर आते है जिसकी कोई सीमा नही है। आज इतना लोभ बढ गया है कि इसके चलते मानव अपनी मानवता सहित अधिकार को भी खो बैठा है।
तभी संकेत हरा मिला सीटी बजी , गाड़ी पर चढ़ा और बनारस के लिए चल दिये यही सोचते हुए मनुष्य का लोभ मनुष्य को ही खा रहा है।
—- रमेश कुमार सिंह