नारी …
न मैं राधा हूँ न मैं मीरा
न मैं सीता हूँ न मैं गांधारी
न मैं लैला हूँ न मैं सोहनी
न मैं देवी हूँ न मैं दासी
मैं तो सिर्फ ईश्वर की रचना
त्याग, प्रेम ,ममता ,वात्सल्य से
परिपूर्ण नारी हूँ ……….
जिसे कई नामों से
जाना , माना, पहचाना गया
पर अंतर मन की
जान सको तो जानो
सिर्फ प्यार , मान , सम्मान
की उपेक्षक नारी हूँ मैं
सिर्फ नारी हूँ मैं ||
नहीं साहस मेरा मीरा बन
विरह का विष पी जाऊं
या बन राधा बंसी की धुन पर
सर्वस्व लुटा दूँ
या सीता बन सदा दूँ अग्नि परीक्षा
या बन गांधारी चलूँ आँखें मूँद
या बन सोहनी प्रेम की लहरों में डूब जाऊं
है इच्छा तो बस इतनी भर
नारी हूँ नारी ही समझी जाऊं
नारी हूँ नारी ही कहलाऊँ ||
माँ , बेटी , बहन , बहू
हर रिश्ते को मैं जीती हूँ
बस मिले प्यार के बदले प्यार
यही सदा में चाहूं
नारी हूँ नारी ही समझी जाऊं
नारी हूँ नारी ही कहलाऊँ ||
— मीनाक्षी सुकुमारन
bahut achha lga .
बहुत अच्छी कविता .
अच्छी कविता !