बाल साहित्य लिखे बिना अधूरा है साहित्यकार’
वर्तमान संस्कृति ने सम्पूर्ण दुनिया की रुपरेखा ही बदल डाली है | आज के युग में सबके लिए सबकुछ उपलब्ध है | अगर नहीं है, तो सिर्फ नन्हें-मुन्नों के पढने लायक कोई सामग्री | आज बच्चा जब स्कूली किताबों के अलावा कुछ पढना चाहता है तो उसके सामने एक सबसे बड़ी समस्या होती है कि वह आखिर पढ़े तो पढ़े क्या ….? आज के यही बच्चे कल के भविष्य हैं ,इन्ही पर हमारे देश एवं राष्ट्र का भविष्य टिका है | आज बाल-साहित्य का घोर अभाव है | सच मानिये तो साहित्य की इतनी घोर उपेक्षा पहले कभी नहीं हुई | पहले महान लेखकों की लेखनी भी इस दिशा में गतिशील थी, पर वर्तमान में इसका अभाव दिख रहा है | जबकि सच तो यह है कि जब तक कोई लेखक बाल-साहित्य नहीं लिखता तबतक वह लेखक की श्रेणी में नहीं आता | आज हालत यह है कि बाल – साहित्य लिखना दिवतीय श्रेणी का लेखन माना जाने लगा है | लगता है जैसे आज बच्चों को साहित्य की कोई जरुरत ही नहीं है | मैं जब अपने अनुभवों से गौर करती हूँ तो पाती हूँ इसकी मुख्य वजह है, बच्चों की सोच, उनकी रुचियाँ, बौद्धिक स्तर के अनुरूप साहित्यिक सामग्री की कमी……! इसके दुष्परिणाम हमें सामने दिख रहे हैं | आज बाल साहित्य के अभाव में बच्चों में आदर्श एवं नैतिक मूल्यों के प्रति कोई रुझान नहीं है |
आज साहित्य से दूरत्व होने की वजह से बच्चों में जो शून्यता आई है, उस शून्य को एक स्वस्थ साहित्य ही भर सकता है | पहले के कवि अपनी लेखनी में बाल-मन को दर्शाती हुई अनेक कहानियां लिखते थे जो बाल-मन को प्रभावित करती थी | बच्चे जब इस तरह के साहित्य पढ़ते थे तो वे खुद को उन चरित्रों के बहुत पास महसूस करते थे | पहले कहानियों में चरित्र यथार्थ को परिलक्षित करती हुई रहती थी जिससे उनके मन में एक शाश्वत सत्य का बोध होता था | आज का कड़वा सच यह है कि आज न तो बच्चों के निर्मल मन को अभिभावक समझ पा रहें हैं और न ही शिक्षक | हर जगह बस उनपे एक थोपा हुआ उद्देश्य सामने नजर आता है, फिर ऐसे हालत में बच्चों का बचपन प्रभावित होना तो जायज है | आज भी बच्चे जागरूक हैं ,बस कमी है उनमें नैतिक मूल्यों के समावेश का, यहीं पे एक अच्छी बाल-साहित्य की जरुरत महसूस होती है | बच्चों के सोचने -विचारने ,रहन -सहन आदि में रूचि लेनी होगी,तभी उनमें स्वस्थ मानसिकता का विकास संभव होगा | आज बच्चों में हर पल हजारों प्रश्न उठते रहते हैं , इन प्रश्नों का रचनात्मक समाधान बाल-साहित्य के द्वारा होने से उनमें सामाजिकता एवं समसामयिकता का बोध होता है|
बहुत अच्छा लेख. मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ.
सही है बाल साहित्य पर ज़िआदा धियान देने की जरुरत है.