हम तुम्हारी ही परछाई है
अर्धांगनी है तुम्हारी
तुम्हारे साथ ही जीना-मरना है
हम तुम्हारी ही परछाई है
परछाई की तरह ही साथ रहना है
जब जब तुम लड़खड़ा कर गिरोंगे
बढ़कर हम थाम लेंगे तुम्हें
जो तुम देख नहीं पाओंगे
वो चीज भी दिखायेंगे तुम्हें,
भटक गए यदि कही दो राहें पर
तो मंजिल का पता बताएगें तुम्हें,
जब कभी तुम हमें आवाज दें पुकारोंगे
सब कुछ छोड़ पास तुम्हारें दौड़े आएगें
जब जब तुम संकट में होंगे
वादा है हमारा हम साथ ही होंगे तुम्हारें ,
पर एक प्रार्थना है हमारी तुमसे
हमें अपने दिल में यू ही बसायें रखना ,
प्यार करते हो तुम जितना हमसे सनम
उसे यूँ ही सदैव हृदय में बनायें रखना |
+++++ सविता मिश्रा +++++
बस यही सुख भरी जिंदगी जीने का राज़ है.
बहुत अच्छी कविता, बहिन जी.